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व्याख्याप्राप्तिः
NASIK
पुढवीए उवरिमहेटिल्लेसु खुड्डागपयरेसु एस्थ ण तिरियलोगस्समझे अट्टपएसिए रुयए पण्णत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तंजहा-पुरच्छिमा पुरच्छिमदाहिणा एवं जहा दसमसए नामधेजत्ति ॥ ( सूत्रं ४७९)॥ [प्र०] हे भगवन् ! लोकना आयाम-लंबाईनो मध्य भाग क्या कहेलो छ ? [उ०] हे गौतम ! आ रत्नप्रभा पृथिवीना आका
*उद्देशः४
॥११५४॥ शना खंडनो असंख्यातमो भाग उल्लंघन कर्या पछी अहीं लोकना आयामनो मध्यभाग कहेलो छ. [प्र०] हे भगवन् !क्यां अधोलोकना आयाम-लंबाइनो मध्य भाग कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! चोथी पंकप्रभा पृथिवीना आकाशना खंडनो कंडक अधिक अरधो भाग उल्लंघन कर्या पछी अहीं अधोलोकना आयामनो मध्य भाग कहेलो छे. [प्र.] हे भगवन् ! क्यां ऊर्ध्वलोकनी लंबाइनो मध्यभाग कहेलो छ ? [उ.] हे गौतम ! सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवलोकना उपर अने ब्रह्मदेवलोकनी नीचे रिष्ट नामे त्रीजा प्रतरने विषे | अहिं ऊर्ध्वलोकना आयामनो मध्य भाग कहेलो . [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकना आयामनो मध्यभाग क्या कहेलो छ ? | [उ.] हे गौतम जंबूद्वीपमा मेरुपर्वतना बरोबर मध्यभागने विषे आ रत्नप्रभा पृथिवीना उपर अने नीचेना क्षुद्र ( सर्व करतां लघु ) एवा बे प्रतरो छ, तेने विषे तिर्यग्लोकना मध्यभागरूप आठ प्रद्देशनो रुचक कहेलो छे, ज्यांथी आ दश दिशाओ नीकळे छे, ते आ प्रमाणे-१ पूर्वदिशा, २ पूर्वदक्षिण-इत्यादि जेम दशमा शतकना प्रथम उद्देशकने विषेकयु छे ते प्रमाणे यावत् 'दिशाना दश नाम छे'-त्या सुधी जाणवू. ॥ ४७९ ।।
इंदा ण भंते ! दिसा किमादीया किंपवहा कतिपदेसादीया कतिपदेसुत्तरा कतिपदेसीया किंपजवसिया कि|संठिया पन्नत्ता?, गोयमा! इंदाणं दिसा ख्यगादीया रुयगपवहा दुपएसादीया दुपएसुत्तरा लोग पडुच्च असं
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