________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
व्याख्याप्रज्ञासिः ॥११४७॥
NABRACEBOOK
| तेम आरण अने अच्युतने विषे पण ए प्रमाणे जाणवू, परंतु विमानोनी संख्यामा विशेषता छे. ए प्रमाणे अवेयक संबंधे पण जाणवू, [प्र०] हे भगवन् ! केटलां अनुत्तर विमानो कयां छे' [उ०] हे गौतम! पांच अनुत्तर विमानो कहेला . [प्र०) हे भगवन् !
का१३शतके | ते अनुत्तर विमानो संख्याता योजनविस्तारवाळां छे के असंख्याता योजनविस्तारवाळां छ? [30] हे गौतम ! संख्याता योजन
उद्देश:
११४७॥ विस्तारवाळू पण , तेमज असंख्याता योजनविस्तारवाळां पण के. [H०] हे भगवन् ! पांच अनुत्तर विमानोमांना संख्याता योजन विस्तारवाळा विमानने विष एक समये केटला अनुत्तरोपपातिक देवो उत्पन्न थाय, केटला शुक्ललेश्यावाळा उत्पन्न थाय-इत्यादि प्रश्न करवो. [उ.] हे गौतम! पांच अनुत्तरविमानोमां संख्यातायोजन विस्तारवाला सर्वार्थसिद्ध अनुत्तर विमानने विषे जघन्यथी एक, बे के त्रण, अने उत्कृष्टथी संख्याता अनुत्तरौपपातिक देवो उत्पन्न थाय छ. ए प्रमाणे जेम संख्याता विस्तारवाळा ग्रेवेयक विमानो संबन्धे का ते प्रमाणे अहिं कहेवु, परन्तु एटलो विशेष के कृष्णपाक्षिको, अभव्यो अने त्रण अज्ञानने विष वर्तता जीवो अहिं उपजता नथी, च्यवता नथी अने सत्तामा पण होता नथी-एम कहे. अचरमनो (जेने छेल्लो अनुत्तर देवनो भत्र नथी, पण बधारे भवो के तेनो) पण प्रतिषेध करवो, [ केमके अनुत्तरसर्वार्थसिद्धने विषे जे चरम होय तेज उपजे. ] यावत्-त्यां 'संख्याता चरम' (जेने छेल्लो अनुत्तर देवनो भव छे तेओ) कहेला छे. बाकी वर्षा पूर्व पेठे जागवू. असंख्याता योजन विस्तारवाळा अनुत्तर विमानोने विषे पण पूर्वोक्त (कृष्णपाक्षिकादिक) न कहेवां, पण त्यां अचरम (जेने ते डेल्लो भव नथी एवा) उपजे छे. बाकी जेम ग्रैवेयकने विषे का तेम असंख्यातायोजन विस्तारवाळा अनुत्तर विमानोने विषे यावत्-'असंख्याता अचरम कमा छ त्यांसुधी जाणवू.
चोसट्ठीए णे भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु संखेजवित्थडेसु असुरकुमारावासेसु किं सम्मविट्ठी अ-.
RAKATHASE
For Private And Personal