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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥११३७॥
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इमीसे णं भंते 1 रयणप्पभाए पुढबीए तीसाए निरयावाससयस हस्सेसु संखेज्जवि० नरएस किं सम्मद्दिट्ठी नेरतिया उवव० मिच्छादिट्टी ने० उ० सम्मामिच्छादिट्ठी नेर० उ० ?, गोयमा ! सम्मदिट्ठीवि नेरइया उ० मि च्छादिट्ठीवि नेरइया उव० नो सम्मामिच्छादिट्ठी उव० | हमीसे गं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावासमय सहस्से संखेजवित्थडेसु नरएस किं सम्मदिट्ठी नेर० उच्वहंति !, एवं चेव । इमीसे णं भंते! रयणप्पभार पुढबीए तीसाए निरयात्रासमयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडा नरगा किं सम्मद्द्द्विीहिं नेरइएहिं अविरहिया मि. च्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया सम्मामिच्छादिट्ठीहिं नेरहएहिं अविरहिया वा ?, गोयमा ! सम्मदिट्ठीहिवि नेरइएहिं अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिवि० अविरहिया, सम्मामिच्छादिट्ठीहिं० अविरहिया विरहिया वा, एवं असंखेज्जवित्थडे सुवि तिन्नि गमगा भाणियव्वा, एवं सकरप्पभाएवि एवं जाव तमाएवि । असत्तमाए णं भंते ! पुढबीए पंचसु अणुत्तरेसु जाव संखेजवित्थडे नरए किं सम्मद्दिट्ठी नेरइया पुच्छा, गोयमा ! सम्मद्दिट्ठी नेरइया न उवव० मिच्छादिट्ठी नेरइया उबव० सम्मामिच्छादिट्ठी नेरइया न उवव०, एवं उब्वहंतिवि, अविरहिए जहेब रयणष्पभाए, एवं असंखेज्यवित्थडेसुषि तिनि गमगा ॥ ( सूत्र ४७१ )
[प्र०] हे भगवन् ! आ रत्नप्रभापृथिवीना त्रीशलाख नरकावासोमांना संख्याता योजनविस्तारवाळा नरकावासोने विवे शुं सम्यग्दृष्टि नारको उत्पन्न थाय, मिध्यादृष्टि नारको उत्पन्न थाय के सम्यग्मिथ्यादृष्टि नारको उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम! सम्यग्दृष्टि पण नारको उपजे, मिध्यादृष्टि पण नारको उपजे, परन्तु सम्यरिमध्यादृष्टि नारको उत्पन्न थता नथी. [प्र०] हे भगवन् !
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१३ शतके उद्देशः १ ॥११३७॥