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व्याख्या
प्रशतिः ॥११२४।।
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[प्र० ] हे भगवन् ! पंचप्रदेशिक स्कंध आत्मा के के तेथी अन्य पंच प्रादेशिक स्कंध ले १ [उ०] हे गौतम! पंचप्रदेशिक स्कंध १ कथंचित् आत्मा छे, २ कथंचित् नोआत्मा छे, अने ३ आत्मा तथा नोआत्मारूपे कथंचित् अवक्तव्य छे, ४ कथंचित् आत्मा, नोआत्मा अने आत्मा अने अनात्मा उभयरूपे कथंचित् अवक्तव्य के. नोआत्मा अने अवक्तव्यवडे ए प्रमाणे चार भांगा करवा. त्रिक संयोगमां (आठ भांगा थाय छे ) एक आठमो भांगो उतरतो नधी, एटले सात मांगाओ थाय छे. (कुल मळीने बावीश भांगाओ थाय छे.) [प्र० ] हे भगवन् ! शा हेतुथी ( पंचप्रदेशिक स्कन्ध आत्मा के ) इत्यादि पाठनो पुनः उच्चार करवो [अ०] हे गौतम । १ (पंचप्रदेशिक स्कन्ध) पोताना आदेशथी आत्मा छे, २ परना आदेशथी नोआत्मा छे, ६ तदुभयना आदेशथी अवक्तव्य छे, ४ देशना आदेशथी सद्भावपर्यायनी अपेक्षाए अने देशना आदेशथी असद्भावपर्यायनी अपेक्षाएं कथंचित् आत्मा के अने आत्मा नथी. ए प्रमाणे द्विकसंयोगमां सर्वे भांगा उपजे छे, मात्र त्रिकसंयोगमां (आठमो) एक मांगो उतरतो नथी. षट्प्रदेशिक स्कन्धने विषे सर्वे भांगाओ लागु पडे छे, जेम पट्प्रदेशिक स्कन्धने विषे कर्छु, तेम यावत् अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध संबंधे जाणं, 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे' एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे. ।। ४६९ ।।
भगवत् सुधर्मस्वामी प्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना १२ मा शतकमां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
॥ इति श्रीद्वादशशतक समाप्तः ॥
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१२ शतके | उद्देशः १० ।।११२४ ॥