________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kalashsagarsuri Gyanmandir
राए, सेवं भंते!२॥ (सूत्रं ६०७) ॥ १७-८।। व्याख्या 81 प्र०] हे भगवन् ! जे अकायिक जीव आरतप्रभा पृथिवीमा मरणसमुद्घात करीने सौधर्मकल्पमा अकायिकपणे उत्पन्न बावाने १७शतके प्रज्ञप्ति | योग्य छे- इत्यादि प्रश्न. [उ०] जेम पृथिवीकायिकसंबन्धे कछुके तेम अप्कायिकसंबन्धे पण बघा कल्पोमा कहेQ, यावत् ईषत्प्राग्मारा
उदेवा-९ ॥१४४२॥
C९५४२ पृथिवीमां पण ते प्रमाणे उपपात कहेवो. तथा जेम रसप्रभाना अकायिक जीवनो उपपात करो छ तेम यावत्-सातमी पृथिवीना 51 अप्कायिकजीवनो पण यावद-ईषत्प्राम्भारा पृथिवी सुधी उपपात कहेवो. 'हे भगवन् ! ते एमज छ, हे भगवन् ! ते एमज के.' ॥६०७॥
भगवद सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १७ मा शतकमा आठमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण धयो.
छन्
शतक १७. (उद्देशक ९) आउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोह जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवल. एसु आउकाइयत्ताए उजव जित्तए से गं भंते ! सेसं तं चेव एवं जाब अहेसत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिपन्भाराआउकाइओ जाव अहेसत्तमाए उबवाएपव्वो, सेवं भंते ! २ ।। (सूत्र ६०८) ।। १७-९॥
[प्र.] हे भगवन ! जे अकायिक जीव सौधर्मकल्पमा मरणसमुद्घातने प्राप्त थईने आरसप्रभाना घनोदधिवलयोमा अकायि. कपणे उत्पन्न बचाने योग्य छे, ते हे भगवन् !-इत्यादि प्रश्न. [उ.] बाकी बधु पूर्व प्रमाणे जाण. एम यावत्-अधःसप्तम पृथिवी 13 मधी जाणवू, जेम सौधर्मकल्पना अप्कायिकनो (नरक पृधिवीमां) उपपात करो तेम यावत्-ईषत्प्राग्भारापृथिवीना अकायिक
COMCHHORUS
For Private And Personal