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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥१४२६
RAKAKAR
वदृमाणस्स अपणे जीवे अन्ने जीवाया, से कहमेयं भंते! एवं ?, गोयमा ! जपणं ते अन्नउत्थिया एइमाइक्खंति | जाव मिच्छ ते एबमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि-एवं खलु पाणातिवाए जाब मि- १७ शतके च्छादमणमल्ले बदमाणस्म सञ्चेव जीवे सच्चेव जीवाया जाव अणागारोबओगे बद्दमाणस्स सच्चेच जीवे सच्चेच Pउद्देशार
२४२६॥ जीवाया ।। (सूत्रं ५९७)॥
[प्र०] हे भगवन् ! अन्यतीथिको आ प्रमाणे कहे , यावत् प्ररूपे छे के प्राणातिपातमां, मृषावादमां यावत्-मिथ्यादर्शनश ल्यमां वर्तता प्राणीनो जीव अन्य के अने जीवात्मा तेथी अन्य छ, प्राणातिपातविरमणमां, यावद-परिग्रहविरमणमां, क्रोधना त्यागमां-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्यना त्यागमा वर्तता प्राणीनो जीव अन्य छे अने तेथी तेनो जीवात्मा अन्य छे. औत्पत्तिकी बुद्धिमां, यावत्-पारिणामिकी बुद्धिमा वर्तमान प्राणीनो जीव अन्य छे अने तेथी जीवात्मा अन्य छ; अवग्रह, ईहा, अवाय अने धारणामां वर्तमान प्राणीनो जीव अन्य छे अने जीवात्मा तेशी अन्य छे उत्थानमा, यावत्-पुरुषकार-पराक्रममा वर्तमान प्राणीनो जीव अन्य छे अने जीवात्मा तेथी अन्य छे नैरयिकपणामां, पंचेंद्रियतिर्यचपणामां, मनुष्यपणामां तथा देवपणामां वर्तमान जीव अन्य छे अने जीवात्मा अन्य छे; ज्ञानावरणीयमा यावत-अंतरायमां वर्तमान प्राणीनो जीव अन्य छे अने तेथी जीवात्मा अन्य छे; कृष्णलेश्यामां, यावत्-शुक्ल लेश्यामां, तथा सम्यग्रष्टि मिथ्यादृष्टि अने सम्यग्मिथ्याष्टिमां, १ चक्षुदर्शन २ अचक्षुदर्शन, ३ अवधिदर्शन अने ४
केवल दर्शनमां, ५ आभिनिवोधिकजान, श्रुनज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान अने केवळज्ञानमां, मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, अने भविभंगज्ञानमा, आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, निद्रासंत्रा अने मैथुनसंज्ञामां, अने एज प्रमाणे औदारिक शरीर, वैक्रिय शरीर, आहारक ||
जन
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