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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥ १४१६ ।।
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कओहिंतो अनंतरं उब्वट्टित्ता भूगाणंदे हस्थिरायत्ताए एवं जहेब उदायी जाव अंतं काहिति ॥ (सूत्रं ५९९) ॥ [प्र० ] राजगृह नगरमा भगवान् गौतम यावत्-आ प्रमाणे बोल्या - हे भगवन् ! उदायी नामे प्रधान हस्ती कई गतिमांथी मरण पामी तुरत अहीं उदायी नामे प्रधान हस्तीपणे उत्पन्न थयो छे ? [उ०] हे गौतम! ते असुरकुमार देव थकी मरण पामी तुरत अहीं उदायी नामे प्रधान हस्तीपणे उत्पन्न थयो छे. [प्र० ] हे भगवन् ! आ उदाथी नामे हस्ती मरणसमये मरी क्यां जशे, क्यां उत्पन्न थशे ? [30] हे गौतम! आ रत्नप्रभा पृथिवीने विषे एक सागरोपमनी उत्कृष्ट स्थितिवाळा नरकावासमा नैरयिकपणे उत्पन्न थशे. [प्र०] हे भगवन् ! ते (उदायी हस्ती) त्यांथी मरण पामी तुरत क्यों जशे क्यों उत्पन्न थशे ? [अ०] हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमां उत्पन्न थई सिद्ध थशे, सर्व दुःखोनो अन्त करशे. [प्र० ] हे भगवन् ! भूतानंद नामे प्रधान हस्ती कई गतिमांथी मरण पामी तुरत अहिं भूतानंद नामे हस्तीपणे उत्पन्न थयो छे ? [उ० ] जेम उदायी नामे हस्तीनी वक्तव्यता कही तेम भूतानंदनी पण वक्तव्यता अहिं जाणवी. याच सर्व दुःखोनो अन्त करशे ।। ५९१ ।।
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पुरिसे णं भंते! तालमारुहइ ता० २ तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए ?, गोयमा जावं च णं से पुरिसे तालमारुहह तालमा० २ तालाओ तालफलं पयालेइ वा पवालेह वा तावं च णं से पुरिसे काइगाए जाब पंचहि किरियाहिं ! ट्ठे, जेसिंपिग णं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निव्वत्तिए तलफले निव्वत्तिए | तेऽवि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरिया हि पुट्ठा ॥ अहे णं भंते ! से तालप्फले अप्पणी गरुयत्ताए जाव पश्चोत्रयमाणे जाई तस्थ पाणाई जाव जीविद्याओ ववशेवेति तए णं भंते । से पुरिसे कति किरिए ?, गोधमा !
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१७ शतके
उद्देशः १ ||| १४१६॥