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उत्सरेणं छोडिसा तहेव जाव चत्तालीसं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एस्थ णं बलिस्स वइरोयणिस्स वइरोयव्याख्या
होणरन्नो पलिचंचा नाम रायहाणी पन्नत्ता एग जोयणसयसहस्सं पमाण तहेव जाव बलिपेढस्स उववाओ जाव १६ शतके प्राप्तिः ॥१४११॥
| आपरक्खा सम्वं तहेव निरवसेसं नवरं सातिरेगं सागरोवमं ठिती पन्नत्ता संसं तं चेव जाव वली वइरोयणिदे उदेशः९ ६ वली २॥ सेवं भंते!२ जाय विहरति ।। (सूत्रं ५८८) ।। १६-९॥
P१४१२॥ * [४०] हे भगवन् ! वैरोचनेन्द्र अने वैरोचन राजा एवा बलिनी सुधर्मा ममा क्या कहेली (आवेली) छे ? [उ०] हे गौतम! 31 जंबूद्वीप नामे द्वीपमा मंदर पर्वतनी उत्तरे तिरहुं असंखेय (डीप-समुद्रो ओलंगीन)--इत्यादि जेम चमरनी हकीकतमां कई छे तेम
अरुणवर वीपनी बाह्यवेदिकाथी अरुणवर समुद्रमा तालीश हजार योजन अवगाह्या पछी पैरोचनेन्द्र अने वैरोचनराजा एवा बलिनो रुचकेंद्र नामनो उत्पात पर्वत कह्यो . ते उत्पात पर्वत १७२१ योजन उंचो छे. बाकीनु बधुं तेनुं प्रमाण तिमिच्छिकूट पर्वतनी | पेठे जाणवू तेना प्रामादावतंसकर्नु पण प्रमाण तेज प्रमाणे जाणवू. तथा बलिना परिवार साथे सपरिवार सिंहासन पण ते प्रमाणे
कहेवु. रुचकेन्द्र नामनो अर्थ पण ते प्रमाणे कडेवो. विशेष ए के अहिं रुचकेन्द्र (पनविशेष) नी प्रभावाळां उत्पलादि जाणवां. बाकी है। बधुं तेज प्रमाणे यावत्-ते बलिचंचा राजधानी तथा अन्योनु (आधिपत्य करतो विहरे ने.) त्यांसूधी कहे. ते रुचकेन्द्र उत्पात P पर्वतनी उत्तरे छ सो (पंचावन कोड, पांत्रीश लाख, पचास हजार योजन अरुणोदय समुद्रमां तिरछु जइने नीचे रत्नप्रभा पृथ्वीमां) | इत्यादि पूर्ववत् यावत्-चालीस हजार योजन गया पछी त्यां वैरोचनेन्द्र वैरोचनराजा एवा पलिनी 'बलिचंचा' नामनी राजधानी | कही (आवेली) छे. ते राजधानीनो विष्कंभ-विस्तार एक लाख योजन छे, याकीनु पधुं प्रमाण पूर्व प्रमाणे जाणवू, अने ते यावत्-है।
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