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नीचेना चरमांतथी उपरना चरमांतमा जाय ? [उ.] हे गौतम! हा, परमाणु पुद्गल एक समये लोकना पूर्व चरमान्तथी पश्चिम व्याख्या चरमांवमा, यावन-नीचेना घरमांतथी उपरना चरमांतमा जाय. ॥ ५८५ ।।
१६ शतके प्रज्ञप्ति
पुरिसे गंभंते ! वासं वामति ? नो वासं वामतीति ? इत्थं वा पायं वा पाहुं वा ऊ वा आउद्यावेमाणे वा प-18| उद्देशः८ ॥१४०९॥
१४.९॥ सारेमाणे वा कतिकिरिए ?, गोयना ! जावं च ण से पुरिसे वासं वासति वासं नो वासतीति हत्थं वा जाच ऊर वा आउट्टावेति वा पसारेति या तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे (सूत्रं ५८६)॥
प्र०] हे भगवन । 'वरसाद बरसे के नथी बरसतो'ए [जाणवाने ] माटे कोई पुरुष पोतानो हाथ, पग, बाहु, के उरु संकोचे के पसारे बो ते पुरुषने केटली क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम ! 'बरसाद बरसे के के नथी वरसतो'ए जाणवाने माटे जे
पुरुष पोतानो हाथ, यावत्-उरु संकोचे के पसारे ते पुरुषने कायिकी वगेरे पांचे क्रियाओ लागे. ॥ ५८६ ॥ का देवे णं भंते। महडिए जाच महेमक्खे लोगते ठिच्चा पभू अलोगसि हत्थं वा आच ऊरं वा आउंटावेत्तए या
| पसारेत्तए वा !, णो तिणढे समढे, से केणटेणं भंते ! एवं बुदइ देवे णं महड्डीए जाव लोगते ठिच्चा णो पभू अलो. है। गंसि हत्थं वा जाय पमारेत्तए चा?, गोयमा! जीवाणं आहारोबचिया पोग्गला बोंदिचिया पोग्गला कलेवरचिया
पोग्गला पोग्गलामेव पप्प जीवाण य अजीवाण य गतिपरियाए आहिजइ, अलोए ण नेवस्थि जीवा नेवत्थि पोग्गला से तेण?णं जाच पसारेत्तए वा ।। सेवं भंते ! २त्ति ॥ (सूत्रं ५८७ ) ॥ १६-८॥
[प्र.] हे भगवन् ! मोटी ऋद्धिवालो यावत्-मोटा सुखवाळो देव लोकांतमा रहीने अलोकमां पोताना हाथने, यावत्-उरुने |
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