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प्रशतिः
| उमेश ४ ॥१३७
| कम्मा समणाउसो, दुट्टाणेसु दुसेजासु दुन्निसीहियासु तहा२णं ते पोग्गला परिणमंति नस्थि अचेयकडा कम्मा व्याख्या- समणाउसो!, आर्यके से वहाए होति, संकप्पे से वहाए होति, मरणंते से वहाए होति, तहा २ ण ते पोग्गला
परिणमंति, नस्थि अचेयकडा कम्मा समणाउसो, से तेणटेणं जाव कम्मा कजंति, एवं नेरतियाणवि एवं जाव घेमाणियाणं । सेवं भंते! सेवं भंते ! जाब विहरति ॥ (सूत्रं ५७०) ।। १६-२॥ | [प्र०] हे भगवन् ! जीवोना कर्मों चैतन्यकृत होय के के अचैतन्यकृत होय छ ? [उ.] हे गौतम जीवोना कर्मों चतन्यकृत | होय छे पण अचतन्यकृत नथी होता. [प्र० हे भगवन् । तेनु शु कारण छे के 'जीवोना कर्मों चैतन्य कृत होय छे पण अचैतन्यकृत नथी होता' ? [उ०] हे गौतम! जीवोए ज आहाररूपे, शरीररूपे अने कलेवररूपे उपचित (संचित) करेला पुगलो ते ते रूपे परिणमे छे, माटे हे आयुष्मन् श्रमण ! अचैतन्यकृत को नथी. तथा दु:स्थानरूपे, दुशय्यारूपे, अने दुर्निषद्यारूपे ते ते पुद्गलो
परिणमे छे माटे हे आयुष्मन् श्रमण ! अचैतन्यकृत कर्मपुदलो नथी. तथा ते आतंकरूपे परिणमी जीवना वध माटे थाय छे, संकहैल्परूपे परिणमी जीवना वध माटे थाय छे अने मरणांतरूपे परिणमी जीवना वध माटे थाय छे माटे हे आयुष्मन् श्रमण ! कर्मपुद्गलो | अचैतन्यकत नथी. ते कारणथी यावत्-जीवोना कर्मो अचैतन्यकृत नथी. ए प्रमाणे नैरयिको संबंधे अने यावत् वैमानिको संबंधे पण जाणवू. 'हे भगवन् ! ते एमज थे, हे भगवन् ! ते एमज' एम कही यावद् विहरे छे. ॥ ५७० ॥
. भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना सोळमा शतकमां वीजा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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