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________________ K Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org 5 सेसं जाणेत्ता भत्तं पञ्चक्खाहिति एवं जहा उववाइए जाच सव्वदुक्खाणमंतं काहिति । सेवं भंते ! २त्ति जावर व्याख्याविहरइ (सूत्रं ५६१)॥ तेयनिसग्गो समत्तो॥ समत्तं च पन्नरसम सयं एकसरयं ॥ १५-१॥ 12१५ शतके प्रज्ञात Cउद्देश ॥१३६१॥ ___ स्यारवाद ते दृढप्रतिज्ञ केवली पोलानो अतीत काळ जोशे, जोईने श्रमण निर्ग्रन्थोने बोलावशे, चोलावीने ए प्रमाणे कहेशे४ा 'हे आयों! ए प्रमाणे खरेखर आजथी घणो काळ पहेलो हुं मंखलिपुत्र गोशालक नामे हतो; अने हुं श्रमणोनो घात करी यावत् छबस्वावस्थामां काळधर्म पाम्यो. हे आर्यो! ते निमित्त हुँ अनादि, अनन्त अने दीर्षमार्गवाळा चारमतिरूप संसाराटवीमा भम्यो. ते माटे तमे कोई आचार्पना प्रत्यनीक-द्वेषी न यशो, उपायायना प्रत्यनीक न यशो, आचार्य अने उपाध्ययना अयश करनारा, अवर्णवाद करनारा अने अकीर्ति करनारा न यशो, अने ए प्रमाणे मारी पेठे अनादि, अनन्त यावत् संसाराटवीमां न ममशो. त्यार| पछी ते श्रमण निग्रन्थो प्रतिक्ष केवलीनी पासे ए वात सामळी, अवधारी भय पामी, त्रस्त थई. त्रास पामी अने संसारना भयची उनि थई दृढप्रतिक्ष केवलीने वंदन करणे, नमस्कार करशे, वंदनम्नमस्कार करी ते पापखानकनी आलोचना अने निन्दा करो, यावत् चारित्रनो स्वीकार करशे. त्यारपछी रदप्रतिक केवली घणा वर्ष पर्यन्त केवलपर्यायने पाळी पोतार्नु आयुष थोई बाकी जाणीने 81 भक्तप्रत्याख्यान करशे, ए प्रमाणे औपपातिकसूत्रमा कडा प्रमाणे यावत् सर्व दुःखोनो अन्त करते. 'हे भगवन् । ते एमजले, हे मगवन् ! ते एमज' एम कही [भगवान गौतम] यावत् विहरे के. ॥ ५६१ ॥ भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीयत्रना १५ मा श्चतकमा प्रथम उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. ARAN SORRORE For Private And Personal
SR No.020110
Book TitleBhagvati Sutram Part 05
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1940
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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