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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१३३८॥
www.kobatirth.org २,लए ण से सीहे अणगारे रेवतीए गाहावतिणीए गिहाओ पडिनिक्खमति०२ मेंढियगाम नगरं मज्झमजणं निग्गच्छति निग्गरत्ता जहा गोयमसामी जाव भत्तपाणं पडिसेति २ समणस्स भगवओ महावीरस्स पाणिसि तं सम्वं संम निस्सिरिति, तए णं समणे भगवं महावीरे अमुच्छिा जाव अणज्झोववन्ने बिलमिच पन्नग| भूएणं अप्पाणेणं नमाहारं मरीरकोटुगंसि पक्विवति, तए णं ममणस्स भगवओ महावीरस्सतमाहारं आहारियस्स समाणस्स से विपुले रोगायंके खिप्पामेव उवसमं पत्ते हटे जाए आरोगे बलियसरीरे तुट्ठा समणा तुट्ठाओ समणीओ तुहा मावया तुहाओ साचियाओ तुहा देवा तुहाओ देवीओ, सदेवमणुयासुरे लोए हढे तुढे जाए समणे भगवं महावीरे हट्ट०२। (सूत्रं ५५७) ।
त्यारे ते सिंह अनगारे रेवती गृहपत्नीने एम का-"ए प्रमाणे खरेखर तमे श्रमण भगवंत महावीरने माटे बे कोहळा संस्कार करी तैयार कर्या छे, देनु प्रयोजन नथी, परन्तु बीजो गइकाले करेलो मार्जारकृत ( मार्जारवायुने शमावनार ) बीजोरापाक के तेने आपो, तेनु प्रयोजन के." त्यारे ते रेवती गृहपत्नीए सिंह अनमारने ए प्रमाणे का-हे सिंह ! कोण आ ज्ञानी के तपस्वी छे के जेणे तने आ रहस्य (गुप्त) अर्थ तुरत करो, अने जेथी तुं जाणे छ ?' ए प्रमाणे स्कन्दकना अधिकारमा का प्रमाणे अहिं कहेg, यावत्-जेथी (भगवंसना कथनथी) ९ जाणुं छु. त्यारे ते रेवती गृहपत्नी सिंह अनमारनी ए वात सांभळी, हृदयमा अवधारी हृष्टाद अने संतुष्ट थई ज्यां भक्तगृह-रसोई छे त्या बाबीने पात्र नीचे मूके के पात्र नीचे मूकीने ज्यां सिंह अनगार के त्यां आवे छे, त्या आवीने सिंह अनगारना पात्रने विणे ते सर्व (बीजोरापाक) आपे के.ते समये ते रेवती गृहपत्नीए द्रव्यशुद्ध एवा यावत्-ते दानवडे
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