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arsuri Gyanmandit
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥११०८॥
१२शतके उद्देशा९ ११०८॥
KAHMEDABASIC
www.kobatirth.org अने उत्कृष्ट अनंतकाळ-कांइक न्यून अर्धपुद्गलपरिवर्त पर्यन्त अन्तर होय. [सं०] हे भगवन् ! धर्मदेवने परस्पर केटलु अन्तर होय. ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जघन्य थी पल्योपमपृथक्त्व (बेथी नव पल्योपम ) अने उत्कृष्ट अनंतकाळ-कंहक न्यून अपार्ध पुद्गल. परिवर्त पर्यन्त अन्तर होय. [प्र०] हे भगवन ! देवाधिदेवने परस्पर केटलु अन्तर होय-ए संबन्धे प्रश्न. [उ.] हे गौतम! तेने अंतर नथी. [प्र०] भावदेवना परस्पर अन्तर संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जघन्यथी अंतर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट अनंतकाळ-वनस्पतिकाळ पर्यन्त अन्तर होय. [प्र.] हे भगवन् ! भन्यद्रव्यदेवो, नरदेवो, यावद्-भावदेवोमांना कोण कोनाथी यावद् विशेषाधिक
छ ? [उ०] हे गौतम ! सौथी थोडा नरदेवो के, ते करतां देवाधिदेवो संख्यातगुण ने, तेथी धर्मदेवो संख्यातगुण छे, ते करतां | भव्यद्रव्यदेवो असंख्यातगुण छे अने तेथी भावदेवो असंख्यातगुण छे. ॥ ४६५॥
एएसिणं भंते! भावदेवाणं भवणवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाण सोहम्मगाणं जाव अच्चुयगाणं गेवेजगाणं अणुत्तरोववाइयाण य कयरे २ जाव विसेमाहिया बा?, गोयमा! सम्वत्थोवा अणुत्तरोववाइया भावदेवा उवरिमगेवेजा भावदेवा संखेजगुणा मज्झिमगेवेजा संखेजगुणा हेडिमगेवेजा संखेजगुणा अच्चुए कप्पे देवा संखेजगुणा जाव आणयकप्पे देवा संखेजगुणा एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव जोतिमिया भावदेवा असंखेजगुणा । सेवं भंते ! २॥ (सूत्रं ४६६)॥ बारसमसयस्स नवमो ॥ १२-९ ।।
[प्र०] हे भगवन् ! भावदेवो भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक, सौधर्म, ईशान यावद्-अच्युतक, अवेयक तथा| अनुत्तरौपपातिक-एओमांना कोण कोनाथी यावद्-विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! सर्वथी थोडा अनुत्तरौपपातिक भावदेवो छ,
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