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१५सके | उद्देशान ॥१३१५॥
GORAK
९ निप्पट्ठपसिणवागरण करेह,
त्यार पछी श्रावस्तीनगरीमा शृंगाटकना आकारवाळा त्रिकोण मार्गमा यावत्-राजमार्गमा घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे के, यावत्-आ प्रमाणे प्ररूपे छ-"हे देवानुप्रियो ! ए प्रमाणे खरेखर श्रावस्तीनगरीनी बहार कोष्ठक चैत्यने विषे वे जिनो परस्पर कहे छे, तेमा एक आ प्रमाणे कहे छ के 'तुं प्रथम काळ करीश' अने बीजा एम कहे के के 'तुं प्रथम काळ करीश.' तेमा कोण सम्यग्वादी-सत्यवादी छे, अने कोण मिथ्यावादी छ ? तेमां जे जे प्रधान-मुख्य माणसो छे ते बोले छे के श्रमण भगवान् महावीर सम्यग्रवादी थे, अने मंखलिपुत्र गोशालक मिथ्यावादी के." श्रमण भगवान् महावीरे 'हे आर्यो ।' ए प्रमाणे निर्ग्रन्थोने बोलावी एम को के हे 'पार्यो : जेम कोई तृणनो कोइ काष्ठनो राशि, पांदडानो राशि, त्वचा-छालनो राशि, तुष-फोतरानो राशि, सुसानो रात्रि, छाणनो राशि, अने कचरानो राशि अनिथी दग्ध थयेलो, अप्रिथी युक्त अने अग्निथी परिणमेलो होय तो ते जेनुं तेज हणायु के, जेनुं तेज गयेलुं छे, जेनुं तेज नष्ट थयु के, जेन तेज भ्रष्ट थयुं छे, जेनुं तेज लुप्त थयेलुं अने जेर्नु विनष्ट थयेखें के एवो यावत्-थाय, ए प्रमाणे मखलिपुत्र गोशालक मारो वध करवा माटे शरीरमाथी तेजोलेश्या बहार काढीने जेनुं तेज हणायु के एवो, तेजरहित अने यावत-विनष्टतेजवाळो थयो छेमाटे हे आर्यों ! तमारी इच्छाथी तमे मखलिपुत्र गोशालकनी साथे धार्मिक प्रतिचोदना-तेना मतथी प्रतिकूल वचन कहो, धार्मिक प्रतिचोदना करी धार्मिक प्रतिसारणा-तेना मतथी प्रतिकूलपणे विस्मृत अर्थन संस्मरण करावो, धार्मिक प्रतिसारणा करी धार्मिक वचनना प्रत्युपचारवडे प्रत्युपचार करो, तेमज अर्थ-प्रयोजन, हेतु, प्रश्न, व्याकरण-उत्तर अने कारण वडे पूछेला प्रश्ननो उत्तर न आपी के तेम निरुत्तर करो'.
NAGARANAS
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