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व्याख्या
प्रज्ञप्ति: ॥११०६॥
ACES+MASABAGESHWA
कहिं उववति?, गोयमा! सिझंति जाव अंतं करेंति । भावदेवा णं भंते! अणंतरं उबत्तिा पुच्छा जहा
है १२शतके वकंतीए असुरकुमाराणं उव्वदृणा तहा भाणियब्वा । भवियदव्वदेवे णं भंते ! भवियदव्वदेवेत्ति कालओ केव
| उद्देश: चिरं होइ ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, एवं जच्चेव ठिई सच्चेव संचिट्ठणावि जाव
॥११०६॥ भावदेवस्स, नवरं धम्मदेवस्स जह० एक समयं उक्कोसेणं देसूणा पुब्धकोडी॥
[प्र०] हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवो तुरतज मरण पामी क्यां जाय-क्यां उत्पन्न थाय ? शुं नैरयिकोमा उपजे, यावद्-देवोमां उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिकोमां, तिर्यंचोमां के मनुष्योमा उत्पन्न थता नथी, पण देवोमा उत्पन्न थाय छे. जो देवोमा उत्पन्न थाय तो ते सर्वदेवोमा उत्पन्न थाय, यावत् सर्वार्थसिद्धमा उत्पन्न थाय. [प्र०] हे भगवन् ! नरदेवो अन्तरहित-तुरतज | मरण पामी क्यां उत्पन्न थाय-ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोमा उत्पन्न थाय, पण तिर्यंच, मनुष्य के देवमां उत्पन्न न थाय,
जो नैरयिकोमा उत्पन्न थाय तो साते नरकपृथिवीमां उत्पन्न थाय. [प्र.] हे भगवन् ! धर्मदेवो तुरतज मरण पामी क्या उत्पन्न थाय-ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम! तेओ नैरयिकोमा, तिर्यंचोमां के मनुष्योमा उत्पन्न थता नथी, पण देवोमा उत्पन्न थाय छे. [प्र०] जो तेओ (धर्मदेवो ) देवोमा उत्पन्न थाय तो शु भवनवासी देवोमा उत्पन्न थाय-इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! भवनवासिदे-18 | वोमां, वानव्यंतरोमां अने ज्योतिष्कोमा उत्पन्न थता नथी, पण वैमानिक देवोमां उत्पन्न थाय छे. सर्व वैमानिकोमा, यावत्-सर्वा-₹ र्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक देवोमां यावत्-उत्पन्न थाय छे, अने केटलाक सिद्ध थाय छे, यावत्-सर्व दुःखोनो नाश करे छे. [प्र.] हे भगवन् ! देवाधिदेवो अन्तररहित-तुरतज मरण पामी क्यां जाय-क्यां उत्पन्न थाय ? [उ.] हे गौतम ! तेओ सिद्ध थाय,
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