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Shri Mahavir Jain Arado
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Acharya Shrikan
asuri Gyanmandi
श उद्देशा३ १५३२॥
पांच प्रकारनी कही छै, ते आ प्रमाणे-१ औदारिकभरीरचलना, यावद-५ कार्मणशरीरचलना. [३०] हे भगवन् ! इन्द्रियचलना व्याख्या-18 केटला प्रकारनी कही छे ? [उ०] हे गौतम ! पांच प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे-१ भोत्रेन्द्रियचलना, यावत्-५ स्पशेन्द्रियचलना. प्रज्ञप्ति 15[.] हे भमवन् ! योगचलना केटला प्रकारनी कही छे? [उ०] हे गौतम ! योगचलना त्रण प्रकारनी कही , ते आ प्रमाणे॥१४॥२॥
मनोयोगचलना, वचनयोगचलना अने काययोगचलना. [सं०] हे भगवन् ! शा हेतुथी औदारिकशरीरचलना २ कवाय के ? ठा[उ०] हे गौतम! जे माटे औदारिक शरीरमां वर्तता जीवोए औदारिकशरीरयोग्य द्रव्योने औदारिकशरीरपणे परिणमावता औदा
रिकशरीरनी चलना करी , करे के अने करशे, ते कारणथी हे गौतम ! औदारिकशरीरचलना २ कहेवामां आवे छे. [प्र.] हे भगवन् ! शा कारणथी वैक्रियशरीरचलना २ कहेवामां आवे के? [उ०] पूर्व प्रमाणे नधु जाण. विशेष ए के वैक्रियशरीरने विषे वर्तता' इत्यादि कहे. (अर्थात्-औदारिकने बदले बधे वैक्रिय कहे.) अने एज प्रमाणे यावत्-कार्मणशरीरचलना सुधी जाणवु [प्र०] हे भगवन् ! शा कारणथी भोत्रेन्द्रियचलना २ कहेवामां आवे के ? [उ०] हे गौतम । श्रोत्रेन्द्रियने धारण करता
जीवीए श्रोत्रेन्द्रिययोग्य द्रव्योने श्रोत्रेन्द्रियपणे परिणमावता श्रोत्रेन्द्रियनी चलना करी, करे के अने करशे, ते कारणथी श्रोत्रेमान्द्रियचलना २ कहेवामां आवे . ए प्रमाणे यावत्-स्पर्शेन्द्रिय चलना सुधी जाणवू. [40] हे भगवन् ! शा कारणथी मनोयोग
चलना २ कहेवामां आवे छे! [उ०] हे गौतम ! जे कारणथी मनयोगने धारण करता जीवोए मनयोग्य जीवोए मनयोग्य द्रव्योने मनयोगपणे परिणमावता मनोयोगनी चलना करी, करे के अने करशे, ते कारणथी मनोयोगचलना २ कहेवामां आवे छे. ए प्रमाणे वचनयोगचलना तथा काययोगचलना पण जाणवी. ॥ ६०० ।।
MARATHI
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