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व्याख्या.
प्रज्ञप्तिः
॥ १४२७॥
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शरीर, तेजस शरीर अने कार्मण शरीरमां, तथा मनोयोग, वचनयोग, अने काययोगमां, साकारोपयोग अने अनाकारोपयोगमां वर्तमान प्राणीनो जीव अन्य छे अने तेनो जीवात्मा अन्य छे. तो हे भगवन् ! ते केम सत्य होय ? [अ०] हे गौतम ! जे अन्यतीर्थको ए प्रमाणे कहे छे, यावत्-तेओ मिथ्या कहे छे. हे गौतम! हुं तो आ प्रमाणे कहुं हुं यावत् प्ररूपुं हुं - " प्राणातिपात यावत् - मिथ्यादर्शनमां वर्तमान प्राणीनो तेज जीव छे अने तेज जीवात्मा छे यावत् - अनाकारोपयोगमा वर्तमान प्राणीनो तेज जीव छे अने तेज जीवात्मा छे. " ।। ५९७ ॥
देवे णं भंते! महड्डीए जाव महेस० पुत्रवामेव रूबी भवित्ता पभू अरूविं त्रिवित्ताणं चिट्ठित्तए ?, जो तिणट्टे समट्ठे, से केणट्टेणं भंते ! एवं वुबह-देवे णं जाव नो पभू अरूविं विउब्वित्ताणं चिट्टित्तए १, गोयमा ! अहमेयं जाणामि अमेयं पामामि अहमेयं बुज्झामि अहमेयं अभिसमन्नागच्छामि, मए एवं नायं मए एवं दि मए एवं बुद्धं मए एवं अभिसमन्नागयं जपणं तहागग्रस्स जीवस्स सरूविस्स मकम्मस्स सरागस्स सवेद [ण]स्स समोहस्स मलेसस्स ससरीरस्स ताओ सरीराओ अविष्यमुक्कस्स एवं पन्नायति, तंजहा - कालत्ते वा जाव सुक्तिलत्ते वा सुगंधत्ते वा दुभिगंध वा तित्ते वा जाव महुर० कक्खडत्ते जाव लुक्खन्ते, से तेणट्टेणं गोयमा ! जान चिट्टित्तए । सचेत्र णं भंते! से जीवे पुण्वामेव अरूवी भवित्ता पभू रूवि विउब्वित्ताणं चिट्टित्तए !, णो तिणट्टे० जाव चि०, गो० ! अहमेयं जाणामि जान जन्नं तहागग्रस्स जीवस्स अरूवस्स अक्रम्मस्स अरागस्स अवेदस्स अमोहरम अलेसम्म अमरीरस्स ताओ सरीराओ विष्यमुकस्स णो एवं पन्नायति, तं०-कालत्ते वा जाव
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१७ शतके उद्देशः२
॥१४२॥