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१७शतके &ा उमेशार
दा अधम्मे ठिया धम्माधम्मेवि ठिया, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोहसवेमाणिया जहा नेर० (सू० ५९५) ।। IR.. भ्याख्या
[प्र०] हे भगवन् ! संयत, प्राणातिपातादिथी विरतिवाळो अने जेणे पापकर्मनो प्रतिघात अने प्रत्याख्यान कयु छे एवो जीव प्राठि ॥१४२३॥ चारित्र धर्ममा स्थित होय, असंयत, अविरत अने जेणे पापकर्मनो प्रतिघात अने प्रत्याख्यान कयु नथी एवो जीव अधर्ममां स्थित
3॥१४२३॥ | होय, तश संयतासंयत जीव धर्माधर्ममा खित होय ? [उ०] हे गौतम! हा, संयत अने विरत जीव धर्ममां स्थित होय, संयता| संयत जीव यावत्-धर्माधर्ममां स्थित होय. [म.] हे भगवन् ! ए धर्ममां, अधर्ममा अने धर्माधर्ममां कोई जीव वेसवाने यावत
आळोटवाने समर्थ छ ? [उ०] हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी (अर्थात्-ते जीवनो स्वभाव होबाथी धर्ममा, अधर्ममां के धर्माधर्ममा कोई जीव बेसी शकतो नथी.) [म.] हे भगवन् ! शा कारणथी आप एम कहो छो के–'यावत-धर्माधर्ममां स्थित होय' ? [उ०] हे गौतम! संयत, विस्त अने जेणे पापकर्मनुं प्रत्याख्यान कयु छ एवो जीव धर्ममां स्थित होय एटले धर्मनो आश्रय करी-स्वीकार करीने विहरे. ए प्रमाणे असंयत, अविरत अने जेणे पापकर्मनु प्रत्यख्यान कर्य नथी एवो जीव अधर्ममां स्थित होय-एटले अधर्मनो आश्रय करी विहरे, तथा संयतासंपत जीव धर्माधर्ममां स्थित होय-पटले जीव धर्माधर्मनो-देशविरतिनो आश्रय करी विहरे. ते माटे हे गौतम ! यावत्-'स्थित होय'. [४०] हे भगवन् ! शुं जीवो धर्ममा स्थित होप, अधर्ममां स्थित होय के धर्माधर्ममा स्थित होय ! [उ०] हे गौतम! जीवो धर्ममां पण स्थित होय, अधर्ममां पण स्थित होय अने धर्माधर्ममां पण स्थित होय. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे नरयिक संबन्धे पृच्छा करवी. [३०] हे गौतम ! नैरयिको धर्ममा स्थित न होय, तेम धर्माधर्ममां स्थित न होय, पण अधर्ममां स्थित होय. ए प्रमाणे यावत्-चउरिन्द्रिय जीवो सुधी जाणवू. [१०] पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवो संबन्धे पृच्छा.
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