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व्याख्याअज्ञप्तिः
॥ १४१८॥
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के ते जीवोने पण कायिक यावत्-पांचे क्रियाओ लागे.
पुरिसे षणं भंते! रुवस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए !, गोपमा ! जावं चणं से पुरिसे रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहि किरियाहि पुढे, जेसिंपिय णं जीवाणं सरीरेहिंनो मूले निव्वत्तिए जाब बीए निव्वत्तिए तेविय णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा, अहे णं भंते! से मूले अप्पणी गरुयत्ता जाव जीविधाओ ववशेवेह तओ णं भंते! से पुरिसे कति किरिए, गोमा ! जावं च णं से मूले अपणो जाव बबरोवेह तावं च गं से पुरिसे काइयाए जाव चउहिं किरियाहिं पुढे, जेसिंपिंग णं जीवाणं सरीरेहितो कंदे निव्यत्तिए जाब बीए निव्वत्तिए तेवि णं जीवा काइयाए जात्र चउहिं पुट्ठा, जेसिंपिंग णं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए तेवि णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरि याहि कंदे, जेविय णं से जीवा अहे बीमसाए पञ्चोवयमाणस्स उवग्गहे वर्हति तेवि णं जीवा काएयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा || पुरिसे णं भंते! रुक्स्वस्स कंदं पचालेह, गो० तावं चणं मे पुरिसे जात्र पंचहिं किरियाहिं पुट्ठे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए जाव बीए निव्वत्तिए तेवि णं जीवा जाव पंचाहिँ किरियाहिं पुट्ठा, अहे णं भंते ! से कंदे अप्पणो जान चउहिं पुढे, जेसिंपिणं जीवाणं सरीरेहिंतो मूले निव्वत्तिए खंधे नि० जाव चाहिं पुट्ठा, जेसिंपि णं जीवाणं सरीरेहिंतो कंदे निव्वत्तिए सेवि य णं जीवा जाब पंचहि पुट्ठा, जेवि य से जीवा अहे वीससार पञ्चोवयमाणस्स जाव पंचहि पुट्ठा जहा खंधी एवं जाव बीयं (सूत्रं ५९२ ) ।।
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| १७ शतके उद्देशः१ ॥१४८॥