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*१वत का उद्देश & ११०१॥
मुहूर्त अने वधारेमां वधारे त्रण पल्योपमनी स्थिति कही हे. (प्र०) नरदेवो संबन्धे प्रश्न. (उ०) हे गौतम ! तेओनी जघन्य स्थिति व्याख्या
सातसो वर्षनी अने उत्कृष्ट चोराशीलाख पूर्वनी स्थिति कही है.(प्र०) हे भगवन् ! धर्मदेवो संबन्धे प्रश्न. (उ०) हे गौतम! तेओनी प्रज्ञप्तिः ॥११०४॥
जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्तनी, अने उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटिनी कही के. (प्र०) देवाधिदेव संबन्धे प्रश्न. (उ०) तेओनी जघन्य स्थिति बहोंतर वर्षनी, अने उत्कृष्ट स्थिति चोराशीलाख पूर्वनी कही के. (प्र०) भावदेवोनी स्थिति संबन्धे प्रश्न. (उ०) तेओनी जघन्य स्थिति दशहजार वर्षनी, अने उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश सागरोपमनी कही छे. ॥ ४६३ ॥
भवियदव्वदेवा णं भंते! किं एगत्तं पभू विउव्बित्तए पुहुत्तं पभू बिउब्वित्तए ?, गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए पहुत्तंपि पभू विउवित्तए, एगत्तं विउव्यमाणे एगिं दियरूवं वा जाव पंचिंदियरूवं वा पुहुत्तं विउवमाणे अाएगिदियरूवाणि वा जाव पंचिंदियरूवाणि वा, ताई संखेजाणि वा असंखेजाणि वा संबद्धवाणि वा असंबद्धाणि
वा सरिसाणि वा असरिमाणि वा विउव्वंति विउवित्ता तओ पच्छा अपणो अहिच्छियाई कजाई करेंति, एवं नरदवाचि, एवं धम्मदेवावि, देवाधिदेवाण पुच्छा,गोयमा! एगतंपि पभू विउवित्तए पुहुत्तपि पभू विउवित्तए, नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा विउव्विति वा विउव्विस्संति वा। भावदेवाणं पुच्छा जहा भवियदव्वदेवा | ॥ (सूत्रं ४६४)॥
(प्र०) हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवो एक रूप विकुर्ववाने समर्थ के के अनेकरूपो विकुर्ववाने समर्थ के ? (उ०) हे गौतम ! (भव्यद्रव्यदेव वैक्रियलब्धिसंपन्न मनुष्य के तिर्यच) एक रूप विकुर्ववाने समर्थ के अने अनेकरूपो पण विकुर्ववाने समर्थ छे. एक
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