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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥१४१२॥
बलिपीठ सुधी समजबूतथा उपपात, यावत्-आत्मरक्षको-ए बधुपूर्ववत् समजवू. विशेष ए के वैरोचनेन्द्र वैरोचन राजा एवा
बलिनी स्थिति सागरोपम करतां कइंक अधिक कही छे. अने बाकी बधु ते संबंधे पूर्व प्रमाणेज जाणवू. यावत्-'वैरोचनेन्द्र पलि छे, हा वैरोचनेन्द्र बलि छ' त्यां सुधी कहे. 'हे भगवन् ! ते एमज , हे भगवन् ! ते एमन के.' ॥ ५८८ ॥
भगवत सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना १६ मा शतकमा नवमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
१६ शतके | उदेशा१०
शतक १६. (उद्देशक १०.) कति विहे गं भंते ! ओही पन्नत्ते?, गोयमा! दुविहा ओही प०, ओहीपदं निरवसेसं भाणियव्वं ॥ सेवं भंते।। सेवं भंते! जाव विहरति ॥ (सूत्रं ५८९) ॥ १६-१०॥
[प्र०] हे भगवन ! अवधिज्ञान केटला प्रकारे कयु छ ? [उ०] हे गौतम ! अवधिज्ञान के प्रकारे कर्तुं छे. अहिं 'प्रज्ञापना' ॐ सूत्रनुं तेत्रीसमु अवधिषद संपूर्ण कहे. हे भगवन् ! ते एमजबे, हे भमवन् ! ते एमज छे-एम कही यावद्-विहरे छे. ॥ ५८९ ॥
भगवत् सुधर्म स्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीउत्रना १६ मा शतकमां दशमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
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