________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
+
www.kobatirth.org आ रत्नप्रभाना उपरना चस्माननी पण वतन्यता जाणवी. तथा रत्नप्रभा पृथ्वीनो नीचलो चरमांत पण लोकनी नीचेना चरमांतनी व्याख्या
पेठे जाणवो. परन्तु विशेष ए के जीवदेशोना संबंधे पंचेंद्रियोमा त्रण भांगा कहेवा. बाकीर्नु बधु तेज प्रमाणे कहेवु. रत्नप्रभा पृथ्वीना प्रज्ञप्ति
उशा८ ॥१४०८॥ चार चरमांतनी पेठे शर्करानभा पृथिवीना पण चार चरमांत कहेवा. अने रत्नप्रभा पृथिवीना नीचेना चरमांतनी पेठे शर्कराप्रभानो
१४०८॥ उपलो तथा नीचेलो चरमांत समनवो. ए प्रमाणे यावत्-सातमी पृथिवी सुधी जाणवु तथा सौधर्म दिवलोक] यावत्-अच्युत (देवलोक] संबंधे पण एज प्रमाणे समजवु. 7वेयक विमानो संबंधे पण तेज प्रमाणे जाणवू पण तेमा विशेष ए छे के उपला अने हेठला चरमांत विपे देशो संबंधे पंचेंद्रियोमा पन वचलो भांगो न कहेवो. बाकीनु बधुपूर्व प्रमाणे ज कहेचु तथा ग्रेवेयक विमा ननी पेठे अनुत्तर विमाननी अने ईपरप्राग्मारा पृथिवीनी पण वक्तव्यता कडेवी. ।। ५८४ ॥
परमाणुपोग्गले णं भंते ! लोगस्स पुरच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ पञ्चच्छिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति ? पञ्चच्छिमिल्लाओ चरिमंताओ पुरच्छिमिल्लं चरिमंतं एगसमएणं गच्छति ? दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ उत्तरिल्लं | जाव गच्छति। उत्सरिल्लाओ दाहिणिल्लं जाव गच्छति ? उवरिल्लाओ चरमंताओ हेडिल्लं चरिमंतं एग जाय गच्छति ? हेडिल्लाओ चरिमंताओ उवरिलं चरिमंतं एगममएणं गच्छति ?, हंता गोयमा! परमाणुपोग्गले णं लोगस्स पुरच्छिमिलंत चेव जाव उवरिलं चरिमंतं गच्छति ॥ (सूत्रं ५८५)॥
[प्र.] हे भगवन् ! परमाणुपुदगल एक समयमा लोकना पूर्व चरमांतथी-डाथी पश्चिम चरमांतमा, पश्चिम चरमांतथी पूर्व IPघरमांतमा दक्षिण चरमांसथी उत्तर चरमांतमा, उत्तर चरमांतथी दक्षिण चरमांतमा उपरना चरमतिथी नीचेना चरमांतमां, अने|31
RECERA
For Private And Personal