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गोषमा पुढषिकाहया णं सारीरं देवणं वेति नो माणसं वेदणं वेदेति से तेणटेणं जाब नो सोगे, एवं जाव चउ. ध्याख्या- रिदिपाणं, सेसाणं जहा जीवाणं जाब वेमाणियाण, सेवं भंते ! २त्ति जाव पज्जुवासति (सूत्रं ५६७)॥
1४२६ शतके प्रज्ञप्तिः 1 [भ] राजगृहमा भगवान् गौतम यावत् आ प्रमाणे बोल्या के, हे भगवन् । जीवोने जरा-पद्धावस्था अने शोक होय
छे उमेश २ [उ.] हे गौतम! जीवोने जरा पण होप छे अने शोक पण होय छे. [प्र.] हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो हो के, जीवोने जरा अने शोक होय छे ? [उ०] हे गौतम ! जे जीवोने शारीरिक वेदना होय छे ते जीवोने जरा होय छे, अने जे जीवोने मानसिक वेदना होय छे ते जीवोने शोक होय छे माटे ते हेतुथी एम काछ के जीवोने जरा अने शोक होय छे, ए प्रमाणे नैरपिको संबंधे तथा यावत् स्तनितकुमारो सधी जाणवू. [म.] हे भगवन् ! पृथिवीकायिकोने जरा अने शोक होय छ। [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिकने जरा होय छे, पण शोक नथी होतो. [प०] हे भगवन् । तेनु शु कारण के पृथिवीकायिकोने जरा होय बने शोकन होय ? [उ.] हे गौतम! पृथिवीकायिको शारीरिक वेदनाने अनुभवे छे, पण मानसिक वेदनाने अनुभवता नथी माटे तेओने जराद होय छे, पण शोक नथी होतो. १ प्रमाणे यावत् चतुरिंद्रिय जीवो सुधी जाणवु. बाकीनाजीवो माटे सामान्य जीवोनी पेठे समजवं.
अने ए प्रमाणे यावत् वैमानिको सुधी कहे. 'हे भगवन् ! ते एमज के एम कही यावत् पर्युपासना करे छे. ॥ ५६७॥ स तेणं कालेणं २ सक्के देविंदे देवराया बबाणी पुरंदरे जाव मुंजमाणे विहरह, इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं है|२ विपुखणं ओहिणा आभोएमाणे २ पामति समण भगवं महावीरं जंबुद्दीवे २ एवं जहा ईसाणे तइयसए तहेव
सकोवि नवरं आमिओगेण सद्दावेतिहरी पायत्ताणियाहिवई सुघोसा घंटा पालओ विमाणकारी पालगं विमाणं
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