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निव्वत्तिया तेविय गंजीवा-काइयाए जाव पंचाहि किरियाहिं पुट्ठा । पुरिसे णं भंते ! अयं अपकोटाओ अयोमरण । व्याख्या 18 संडासएण गहाय अहिकरणिसि उक्खियमाणे वा निक्खिवमाणे वा कतिकिरिए, गोधमा! जावं च ण से
काशके पुरिसे अयं अयकोडाओ जाव निक्खिवह वा तावं च णं से पुरिसे काहयार जाव पाणाइवायकिरिपाए पंचहिं ॥१३६४॥
किरियाहिं पुढे, जेसिपि णं जीवाणं सरीरेहितो अयो निब्बत्तिए संडासए निबत्तिए चम्मेढे निव्वत्तिए मुहिए निबत्तिए अधिकरणि. अधिकरणिखोडी णि. उदगदोणी णि अधिकरणसाला निब्बत्तिया तेवि य णं जीवा
काहयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुट्ठा (सूत्रं ५६४)। * प्र०] हे भगवन् ! लोढाने पाववानी भट्ठीमा लोढाना सांडसावडे लोढाने ऊंचु के नीचुं करनार पुरुषने केटली क्रियाओ
लागे? [उ०] हे गौतम ! ज्यांसुधी ते पुरुष लोढाने तपावधानी भडीमा लोढाना सांडसावडे लोढाने उंचु के नीचे करे के त्यांसुधी ते पुरुषने कायिकीथी मांडीने प्राणातिपात क्रिया सुधीनी पांच क्रियाओ लागे, बळी जे जीवोना शरीरथी लोढुं पन्युं छे, | लोढानी भट्ठी बनी छे, सांडसो बन्यो छे, अंगारा बन्या छे, अंगाराकर्षणी (अंगारा काढवानो सळीयो) बनी छे अने धमण बनी 181 ते बधा जीवोने पण कायिकी यावत्-पांन क्रियाओ लागे छे. [प्रक] हे भगवन् ! लोढानी भट्ठीमांथी लोढाना सांडसावडे लोढाने | लई तेने एरण उपर लेता अने मूकता पुरुषन केटली क्रियाओ लागे । [उ०] हे गौतम! ते पुरुष ज्यासुधी लोढानी भट्ठीमांथी लोढाने लिई यावत् एरण उपर मूके में, त्यांसुधी ते पुरुषने कापिकी यावत् प्राणातिपात सुधीनी पांच क्रियाओ लागे के. वळी जे जीवोमा शरीरथी लोढुं बन्धुके, सांडसो वन्यो छ, चमेंष्टक घण बन्यो के, नानो हथोडो बन्यो छे, एरण बनी छ, एरण खोडवानुं लाकई
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