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१५पल्के
उधर ॥१४॥
॥१३४३॥
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दोचेऽवि नामधेने भविस्मति देवसेणेत्ति देव.,
[प्र.] ए प्रमाणे खरेखर देवानुप्रिय एवा आपनो अन्तेवासी शिष्य मंखलिपुत्र गोशालक छे, ते मंखलिपुत्र गोशालक मरण समये काळ करीने क्यां गयो, क्या उत्पन थ्यो। [उ.] ए प्रमाणे खरेखर हे गौतम! मारो अन्तेवासी कुशिष्य मंखलिपुत्र
I गोशालक जे श्रमणनो घातक अने यावत्-छबस हतो, ते मरण समये काळ करीने उर्वलोकमां चन्द्र अने सूर्यने ओळंगी यावद अच्युतकरपने विषे देवपये उत्पन थयो. त्यां केटलाएक देवोनी बावीश सागरोपमनी स्थिति कही छे, त्यां मोशालक देवनी पण वावीश सागरोपमनी स्थिति छे. [प्र.] से गोशालक देव ते देवलोकथी आयुषना वय थवाथी : यावत्-क्या उत्पन्न थशे १ [उ.] हे गौतम! आ जंबूद्वीपनामे द्वीपमा भरतक्षेत्रने विषे विन्ध्याचल पर्वतनी तळेटीमां दूनामे देशने विषे शतद्वारनामे नगरमां संमुति (सन्मूर्ति) नामे राजाने भद्रा नामे भार्यानी कुक्षिने विषे पुत्ररूपे उत्पन्न थशे. ने त्यां नवमास बरोबर पूर्ण थया पाद अने साडासात दिवस वीस्था पछी यावत्-सुन्दर बाळकने जन्म आपशे. जे रात्रिने विष ने बाळकनो जन्म थशे, ते रात्रिने विषे शतद्वार नामे नगरमा अंदर अने बहार अनेक भारप्रमाण अनेक कुंभप्रमाण वृष्टिरूप पानी वृष्टि अने रजनी वृष्टि थशे. ते वखते ते बाळकना मात-पिता अगीयारमो दिवस वीत्या पछी बारमे दिवसे आवा प्रकारचं गुणयुक्त अने गुणनिष्पन नाम करने-“जे हेतुथी अमारा आ पाळकनो जन्म थयो एटले अतहार नगरने विषे बाम अने अंदर रखनी वष्टि थई, ने माटे अमारा आपाळकतुं नाम 'महाप' २ हो." त्यारपछी ते बाळकना मात-पिता 'महापद्य एवं नाम पाडशे. त्यारपछी ते महापच बाळकने मातापिता कंडक अधिक आठ वर्षनो थयेलो जागीने सारा तिथि, करण, दिवस नक्षत्र अने महतने विषे अत्यन्त मोटा राज्यामिषेकवडे अमिषेक करशे.
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