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उमेश १३१
॥१३१७॥
नमस्कार करी ज्यां गोशालक मंखलिपुत्र छेत्या आवी मंखलिपुत्र गोशालकने धर्मसंबन्धी प्रतिचोदना-तेना मतथी प्रतिकूल वचनो PI कहे छ, धर्मसंबन्धी प्रतिचोदना करी धार्मिक प्रतिसारणा-तेना मतने प्रतिकूलपणे अर्थन स्मरण करावे छे, धर्मसंबन्धी प्रतिसारणा
करी धर्मसंबन्धी वचनना प्रत्युपचारवडे प्रत्युपचार करे छे अने अर्थ-प्रयोजन, हेतु अने कारणवडे यावत्-नेने निरुत्तर करे छ, त्यार बाद श्रमण निन्थोए धार्मिक प्रतिचोदना-तेना मतथी प्रतिकूल प्रश्नो करी अने यावत्-तेने निरुत्तर कयों एटले मंखलिपुत्र गोशाकक अत्यन्त गुस्से थयो अने यावत्-क्रोधथी अत्यंत प्रज्वलित थयो, परन्तु श्रमण निर्ग्रन्थोना शरीरने कहपण पीटा के उपद्रव करवाने तथा तेना कोइ अवयवनो छेद करवाने समर्थ न थयो. सारपछी आजीविक स्थविरो श्रमण निम्रन्थो वडे धर्मसंबन्धी तेना मतथी प्रतिकूलपणे कडेवायेला, धर्मसंबन्धी प्रतिसारणा-तेना मतथी प्रतिकूलपणे स्मरण करावायेला, अने धर्मसंपन्धी प्रत्युपचारवडे प्रत्युचार करायेला तथा अर्थ अने हेतुथी यावत्-निरुत्तर करायेला, अत्यन्त गुस्से करायेला, यावत् क्रोधथी चळता, श्रमण अने निर्घन्धना शरीरने कइपण पीडा-उपद्रव के अवयवोना छेद नहि करता रवा मंखलिपुत्र गोशालकने जोइने तेनी पासेथी पोते नीकळ्या, अने त्यांथी नीकळी ज्या श्रमण भगवंत महावीर के त्या आल्या, त्यां आबीने श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार
प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमीने श्रमण भगवान महावीरनो आश्रय करी दिहरवा लाग्या, अने केटलाएक आजीविक खविरो सामंखलिपुत्र मोशालकनोज आश्रय करी विहरवा लाग्या.
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते जस्सट्टाए हव्यमागए तमढे असाहेमाणे रुंदाई पलोएमाणे दीहुण्डाइनीसासमाणे वाढियाए लोमाई हुँचमाणे अवई कंड्यमाणे पुलिं पष्फोरेमाणे हत्थे विणिधुणमाणे दोहिवि पाएहिं
नय
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