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व्याख्या
१४शतके उद्देशा. ॥१२५
॥१२५७॥
कहे' [उ.] हे गौतम ! केवलज्ञानी उत्थान-उमा थचु, कर्म-गमनादि क्रिया, बल, वीर्य अने पुरुषकार-पराक्रम सहित होय के पण सिद्धो उत्थानरहित, यावत्-पुरुषकार-पराक्रमरहित होय छे, माटे हे गौतम ! सिद्धो केवलीनी पेठे यावत्-प्रश्नोत्तर कहेता नथी. [प्र०] हे भगवन् ! केवलज्ञानी पोतानी आंख उघाडे अने मीचे ? [उ०] हा, गौतम ! आंख उघाडे अने मीचे, एज प्रमाणे शरीरने संकुचित करे अने प्रसारे, उमा रहे, बेसे अने आहे पडखे थाय, तथा शय्या (वसति) अने नैषेधिकी (थोडा काल माटे वसति) करे. ___ केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणति पासति ?, हंता जाणइ पासइ, जहा भंते ! केवली इमं रयणप्पभं पुढवि रयणप्पभापुढवीति जाणइ पासह तहा णं सिद्धेवि इमं रयणप्पभं पुदवि रय णप्पभपुढवीति जाणइ पासह १, इंता जाणइ पासइ, केवली णं भंते ! सकरपर्भ पुढवि सकरप्पभापुरवीति जाणइ पासइ १, एवं चेव, एवं जाव अहेसत्तमा, केवली णं भंते । सोहम्मं कप्पं सोहम्मकप्पेत्तिजाणइ पासइ १, हंता जाण पासइ, एवं चेव, एवं ईसाणं एवं जाव अच्चुयं, केवल्ली णं भंते ! गेवेजविमाणे गेबेजविमाणेत्ति जाणइ पासह, एवं चेष, एवं अणुत्तरविमाणेचि, केवली णं भंते! ईसिपन्भारं पुढवि ईसिपम्भारपुढवीति जाणइ पासह, एवं चेव, केवली णं भंते ! परमाणुपोग्गलं परमाणुपोग्गलेत्ति जाणइ पासही, एवं चेव, एवं दुपएसियं खंधं एवं जाब जहा णं भंते! केवली अणंतपएसियं स्वधं अणंतपएसिए स्वंधेत्ति जाण पासह तहाणं सिद्धेवि अणंतपएसियं जाव पासह, हंता जाणइ पासइ । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति (सूत्रं ५३८) ॥१५-१०॥ चोर संम सयं संमत्तं ॥ १४॥
AMARRERAKAWARD
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