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१४तके
प्रवाप्ति ॥१३५३॥
॥१२५॥
पुत्मलो होय छे ? [उ०] हे गौतम ! तेओने इष्ट पुद्गलो होता नथी, पण अनिष्ट पुगलो होय छे. जेम आस पुद्गलो संबंधे कछु, तेम इष्ट, कांस, प्रिय तथा मनोज्ञ पुद्गलो संबन्धे पण कहेवं. बळी ए प्रमाणे अहिं पांच दंडक कहेवा. [म.] हे भगवन् ! महर्दिक याण मोटा सुखवाळो देव हजार रूपोने विकु ने हजार भाषा बोलवा समर्थ छ ? [उ०] हा, गौतम ! नेम करवा समर्थ छे.५३५
तेणं कालेणं २ भगवं गोयमे अचिकग्गय बालसूरियं जासुमणाकुसुमपुंजप्पकास लोहितगं पासह पासित्ता जायसड्डे जाव समुप्पन्नकोउहल्ले जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद जाब नमंसित्ता जाव एवं वया. सी-किमिदं भंते ! सूरिए किमिदं भंते! सूरियरस अट्टे, गोयमा! सुभे सूरिए तुभे सरियस अट्ठे । किमिदं भंते ! सूरिए किमिदं मंते! सूरियस्स पभा एवं चेव, एवं छाया एवं लेस्सा (सूत्रं ५३६ )।
प्र] हे भगवन् ! ते एक भाषा छे के हजार भाषा छे ? [उ.] हे गौतम ! ते एक भाषा छे, पण हजार भाषा नथी. ते काले, ते समये भगवंत गौतमे तुरतनो उगेलो अने जासुमणाना पुष्पना पुंज जेवो रातो बालसूर्य जोयो, ते सूर्यने जोइने श्रद्धावाळा, अने यावत्-जेने प्रश्ननु कुतूहल उत्पन्न थयु ले एवा भगवंत गौतमस्वामी ज्या श्रमण भगवंत महावीर छ त्यो आव्या, अने यावत्-नमीने यावत्- आ प्रमाणे बोल्या-[प्र.] हे भगवन् ! सूर्य ए शुं छे अने भगवन् !सूर्यनो अर्थ शो हेतु छे ! [उ.] हे गौतम! सूर्य ए शुभ पदार्थ छे, अने सूर्यनो अर्थ पण शुभ छे. [१०] हे भगवन् ! सूर्य र शुछ अने सूर्यनी प्रभा ए झुं छे। [उ०] पूर्व | प्रमाणे जाणवं, ए प्रमाणे छाया-प्रतिबिंब अने लेश्या-प्रकाशना समूह संबन्धे पण जाणवू. ॥५३६ ॥
जे इमे भंते । अज्जत्ताए समणा निग्गंधा विहरंति पते णं कस्स तेयलेस्सं बीतीवयंति', गोयमा! मासप-1
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