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सर
१४शतक
॥१२॥१॥
SARA
उद्देशक ९. अणगारेणं भंते ! भावियप्पा अप्पणो कम्मलेस्सं न जाणहन पासह ने पुण जीवं मरूवि सम्मलेस्सं जाणा ॥१२५॥
पासइ ?, हंना गोयमा! अणगारे णं भावियप्पा अप्पणो जाव पासति ।। अत्थि भंते! सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासंति ४१, हंता अस्थि ॥ कयरे णं भंते ! सरूवी सकम्मलेस्मा पोग्गला ओभामति जाव पभा | सेंति !, गोयमा जाओ इमाओ चंदिमसूरियाणं देवाणं विमाणेहिंतो लेस्साओ पहिया अभिनिस्सडाओताओ ओभासंति पभाति एवं एएणं गोयमा! ते सरूवी सकम्मलेस्सा पोग्गला ओभासेंति ४ (सूत्रं ५३४)
[प्र.] हे भगवन् ! (संयमभावनावडे ) भावितात्मा अनगार जे पोतानी कर्मलेश्याने (विशेषरूपे) जाणतो नथी, अने , (सामन्यरूपे) जोतो नथी ते सरूपी-सशरीरी अने कर्म लेश्यासहित जाणे अने जुए! [उ.] हा, गौतम ! भावितात्मा अनगार जे पोताना कर्मसंबन्धी लेश्याने जाणतो अने जोतो नथी ते शरीरसहित अने कर्म-लेश्यावाला पोताना आत्माने यावद्-जुए छे [प्र०]
हे भगवन् ! रूपी-वर्णादियुक्त सकर्मलेश्य-कर्मने योग्य कुष्णादि लेश्याना पुद्गलस्कन्धो प्रकाशित थाय छे ? [उ०] हा, गौतम ! IM सेवा पुद्गलस्कन्धो प्रकाशित थाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! रूपवाळा अने कर्मने योग्य अथवा कर्मसंबन्धी लेडयाना जे पुद्गलोर
प्रकाशित थाय छे, यावत् प्रकाशित थाय छे ते केटला छे। [उ.] हे गौतम! चंद्र अने सूर्यना विमानोथी जे आ बहार नीकळेली हा लेश्याओ (प्रकाशना पुद्गलो) छे तेओ अवभासित थाय छे, प्रवासित थाय छ, ए प्रमाणे हे गौतम ! ए बधा रूपयुक्त, कर्मने
योग्य लेझ्यावाळा पुगलो प्रकाशित थाय छे. ॥ ५३४ ॥
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