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भत्तपञ्चक्वायए णं भंते ! अणगारे मुच्छिए जाव अझोववन्ने आहारमाहारेति अहे णं वीमसाए कालं क ध्याल्या.
१४वतके प्रवतिः
रेति तओ पच्छा अमुच्छिए अगिद्धे जाव अणज्झोववन्ने आहारमाहारेति !, हंता गोयमा! भत्तपञ्चक्खायए णं उमेश
अणगारे तं चेब, से केणढणं भन्ते! एवं बु०-भत्तपञ्चक्खायए णं तं चेव !, गोयमा! भत्तपञ्चक्रवायए णं अण- का॥१२४२॥ दगारे मुच्छिा जाव अज्झोववन्ने आहारए भवद अहे थे वीससाए कालं करेइ तओ पच्छा अमुच्छिा जावई
आहारे भवइ से तेणद्वेणं गोयमा! जाव आहारमाहारेति (सूत्रं ५२४) ॥
[प्र.] हे भगवन् ! मक्तप्रत्याख्यान करनार (आहारनो त्यागी) अनगार मूर्छित, यावत्-अत्यन्त आसक्त थईने आहार करे, अने पछी स्वभावथी काल-मारणांतिक साधात करे, त्यार पछी अमूर्छित-मूर्छा विना, अमृद्ध-लालच विना यावत्-अनासक्त थई आहार करे ? [उ०] हा, गौतम! भक्तप्रत्याख्यान करनार अनगार-इत्यादि पूर्व प्रमाणे आहार करे. [प्र.] हे भगवान् ! शा हेतुथी एम कहेवाय छे के भक्तप्रत्याख्यान करनार अनगार-इत्यादि [पूर्व प्रमाणे] आहार करे ! [उ.] हे गौतम! भक्तप्रत्याख्यान करनार अनगार [प्रथम] मूर्छित, यावत्-आहारने विषे आसक्त होय छे, त्यार पछी स्वभावथी ते काल-मारणांतिक समुद्घात करे के अने स्यार बाद यावद् आहारने विणे अमूर्छित-रागरहित थई आहार करे . माटे हे गौतम! ते हेतुथी भक्तप्रस्याख्यान करनार अनगार पूर्व प्रमाणे यावत्-'आहार करे छे.' ।। ५२४ ॥
अत्थि भंते ! लवसत्तमा देवा ल.२१, हंता अस्थि, से केणढेणं भन्ते । एवं बुचह-लवसत्तमा देवा ल. २१, गोषमा से जहानामए-केह पुरिसे तरूणे जाव निउणसिप्पोवगए सालीण वा वीहीण वा गोधूमाण वा ज
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