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व्याख्याप्रचतिः
॥१२३६।।
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मनुष्य भवमां (ए प्रमाणे तारी साथै संबन्ध छे, ) वधारे शुं ? पण मरण पछी शरीरनो नाच थया बाद अहींथी व्यवी आपणे बने सरखा, एकार्थ- एकप्रयोजनवाळा, (अथवा एक सिद्धिक्षेत्रमा रहेवावाळा) विशेषता अने मेदरहित थईशुं ॥ ५२१ ।।
जहा णं भंते! वयं एयमहं जाणामो पासामो तहा णं अणुत्तरोबवाइयावि देवा एयम जा० पा० ?, हंता गोमा ! जहा णं वयं एवमहं जाणामो पासामो नहा अणुत्तरोववाइयावि देवा एयमहं जा० पा०, से केणद्वेणं जाव पासंति ?, गोयमा ! अणुत्तरोच्चाइया णं अणताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमन्नागयाओ भवंति से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुम्बइ जाव पासंति (सूत्रं ५२२ ) ॥
[प्र० ] हे भगवन् ! जेम आपणे बने आ (पूर्वोक्त) अर्थने जाणीए छीए अने जोइए छीए, तेम अनुसरौपपातिक देवो पण ए वात जाणे हे अने जुए छे ? [3] हा, गौतम ! जेम आपणे बने पूर्वोक्त वातने जाणीए छीए अने जोइए छीए तेम अनुत्तरौपपातिक देवो पण ए वातने जाणे हे अने जुए के [प्र०] हे भगवन् । ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के 'जेम आपणे जाणीए छीए तेम अनुत्तरौपपातिक देवो पण जाणे छे अने जुए है? [उ०] हे गौतम! अनुत्तरौपपातिक देवोए मनोद्रव्यनी अनंत वर्गणाओ ( अवधिज्ञाननी लब्धिथी (ज्ञेयरूपे) मेळवी छे, प्राप्त करी छे, अने (गुण- पर्यायना ज्ञानधी ) व्याप्त करी छे, माटे हे गौतम! एम कवाय छे के ते (अनुत्तरोपपातिक देवो) जाणे हे अने जुए छे. ।। ५२२ ।।
ऋषिणं भंते! तुलए पण्णत्ते ?, गोगमा ! छन्विहे तुल्लए पण्णसे, तंजहा-दन्वतुल्लए खेत्ततुल्लए कालतुल्लए भवतुल्लए भावतुल संठाणतुल्लए, से केणट्टणं भंते । एवं बुच्च दब्बतुल्लए २१, गोधमा ! परमाणुपोग्गले परमाणु
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१४ के
उद्देशः ७ ॥२२३६॥