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१४चवके उदेका ॥१२१००
लय अविग्गहगहसमावनगा य, विग्गहगइसमावन्नए जद्देव नेरइए जाव नो खलु तस्थ सत्थं कमह, अविग्गहगहव्याख्या
समावनगा पंचिंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-इडिप्पत्ता य अणिपिपत्ता य, तत्थ णं जे से ॥१२२७NDIपत पाचोदया
६ इडिप्पत्ते पंचिंदियतिरिक्खजोणिए से णं अस्थेगहए अगणिकायस्स मझमज्झेण वीयीवएजा अत्थेगइए नो बी |
यीवएज्जा, जेणं बीयीवएना से गं तत्थ झियाएजा, नो तिण? समहे, नो खलु तत्थ सस्थं कमद, तस्थ णं जे PIसे अणिप्पित्ते पंचिंदियतिरिक्वजोणिए से ण अत्धेगतिए अगणिकायस्स मज्झमझेणं वीयीवएज्जा अत्थेगBातिए नो वीइवएना, जेणे वीपीवएज्जा से णं तत्थ झियाएज्जा, हंता झियाएज्जा, से तेणद्वेणं जाव नो वीयीच. एज्जा, एवं मणुस्सेवि, वाणमंतरजोइसियवेमाणिए जहा असुरकृमारे ।। ( सूत्रं ५.५)॥
[प्र.] हे भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव अग्निनी बच्चे थईने जाय ?-ए प्रश्न. [उ०) हे गौतम ! कोइ एक जाय अने 31 कोई एक न जाय. [म.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप भा हेतुथी कहो छो के कोई एक जाय अने कोइ एक न जाय' ? [उ०] हे
गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको वे प्रकारना कया छे, ते आ प्रमाणे-विग्रहगतिने प्राप्त थयेला अने अविग्रहगतिने प्राप्त धयेला. तेमा जे विग्रहगतिने प्राप्त थयेला पंचेन्द्रियतियचयोनिको छे ते नैरयिकनी पेठे जाणवा, यावत्-'तेने शस्त्र असर करतुं नथी.' जे पंचेन्द्रियतिर्यचो अविग्रहमतिने प्राप्त थयेला छे ते वे प्रकाराना कमा छ, ते आ प्रमाणे-ऋद्धिप्राप्त (वैक्रियलब्धियुक्त) अने ऋद्धिने 2 अप्राप्त (वैक्रियलधिरहित ), तेमां जे पंचेन्द्रियतियचो ऋद्धिने प्राप्त थयेला के, तेमांथी कोई एक अग्निनी बचे थइने जाय अने
कोइ एक अग्निनी बच्चे थईने न जाय. [H०] जे अग्निनी बचे थईने जाय छे ते स्यां बळे? [उ०] ए अर्थ समर्थ-यथार्थ नथी,
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