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उद्देशक ३.
१४शतके
व्याख्या
प्राशि
॥१२१७॥
देवे ण भंते ! महाकाए महासरीरे अणगारम्स भावियप्पणो मज्झमझेणं वीइवएन्जा, गोयमा! अत्थेगहएका ॥१२१७० वीइवएज्जा अत्थेगतिए नो बीइवएजा, से केणतुणं भंते ! एवं बुच्चइ अस्गतिए वीइवएना अत्यंगतिए नो बीइवएना, गोयमा! दुविहा देवा पण्णत्ता, जहा-मायी मिच्छादिवीउववनगा य अमायी सम्मदिवीउववनगा य, तत्थ ण जे से मायी मिच्छमिट्टीउववन्नए देवे से गं अणगारं भावियपाणं पासह २ नो वंदति नो नमसति नो सकारेति नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं जाव पज्जुवासति, से णं अणगारस्स भावियप्पणो मज्झमझेणं वीइवएजा, तस्थ णं जे से अमायी सम्मबिडिउववन्नए देवे से णं अणगारं भावियप्पाणं पासह पासित्ता वंदति नमंसति जाव पज्जुवासति, सेणं अणगारस्म भावियप्पणो मज्झमज्झेणं नो वीयीवएज्जा, से तेण गोयमा! एवं बुञ्चइ जाब नो वीइवएज्जा । असुरकुमारे ण भंते ! महाकाये महासरीरे एवं चेव एवं देवदंडओ भाणियव्यो जाय वेमाणिए । (सूत्र ५०६)॥
म०] हे भगवन् ! महाकाय-मोटा परिवारवाळो अने मोटा शरीरवालो देव मावितात्मा अनगारनी बच्चे थईने जाय ? [३०] हे गौतम ! केटलाएक देव जाय, अने केटला एक देव न जाय. [प्र०] हे भगवन् ! आप एम शा हेतुथी कहो छो के, 'केटलाएक देव जाय अने केटलाएक न जाय' [उ.] हे गौतम! देवो वे प्रकारना कहा छे ते आ प्रमाणे-१ मायीमिथ्याष्टिउपपम अने २
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