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१४शतक उद्देशः२ ॥१२१२॥
यवना आवेशरूप अने मोहनीयकर्मना उदयथी थयेलो. तेमा जे यक्षावेशरूप उन्माद छे ते सुखपूर्वक वेदी शकाय अने सुखपूर्वक व्याख्या
मूकी शकाय तेवो छ, अने तेमां जे मोहनीयकर्मना उदयर्थी थयेलो उन्माद छे ते दुःखपूर्वक वेदवा लायक अने दुःखपूर्वक मुकी प्रज्ञप्ति
शकाय तेवो छे. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोने केटला प्रकारनो उन्माद कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम ! तेओने बे प्रकारनो उन्माद ॥१२१३॥
दाहोय छे, ते आ प्रमाणे-१ यक्षावेशरूप उन्माद अने २ मोहनीयकर्मना उदयथी थयेलो उन्माद. [प्र०] हे भगवन् ! आप एम शा
हेतुथी कहो छो के, नैरयिकोने एक यक्षावेशरूप अने बीजो मोहनीयकर्मजन्य एम वे प्रकारनो उन्माद होय छे? [उ.] हे गौतम! देव ते नैरयिकना उपर अशुभ पुद्गलोनो प्रक्षेप करे अने ते अशुभ पुद्गलोना प्रक्षेपी ते नारक यक्षावेशरूप उन्मादने प्राप्त थाय; अने मोहनीय कर्मना उदयथी मोहनीयजन्य उन्मादने पामे; माटे हे गौतम ! ते हेतुथी यावत्---'मोहनीयजन्य उन्माद कह्यो छे.. [प्र०) हे भगवन् ! असुरकुमारोने केटला प्रकारनो उन्माद कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! नैरयिकनी पेठे यावत् वे प्रकारनो उन्माद कह्यो के. परन्तु विशेष ए छे के तेनाथी महार्द्धिक-महासामर्थ्यवाळो देव ते (असुरकुमारो उपर) अशुभ पुद्गलोनो प्रक्षेप करे, अने ते अशुभ पुद्गलोना प्रक्षेप करवाथी ते यक्षावेशरूप उन्मादने प्राप्त थाय. अथवा मोहनीयकर्मना उदयथी मोहनीयजन्य उन्मादने
प्राप्त थाय. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे 'ते हेतुथी यावत्-मोहनीयजन्य उन्माद कह्यो ' त्यांसुधी जाणवू. ए प्रमाणे यावत्-स्तनितकुमार का सुंधी जाणवू. पृथिवीकायिकथी आरंभी यावत् मनुष्योने नैरयिकनी पेठे जाणवू. जेम असुरकुमारोने कयु तेम वानव्यंतर, ज्योतिषिक 2. अने वैमानिक संबन्धे पण कहे. ॥ ५०३ ॥
अस्थि ण भंते ! पजन्न कालवासी बुढिगायं पकरेंति, हंता अस्थि ।। जाहे णं भंते ! सके देविंदे देवराया
मनुष्योने नैरयिमाद कह्यो त्य
कहे.
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