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१५शतके है. उमेश
१२१०॥
| नैरयिकर्नु आयुष न बांधे, यावत-देवायुष पणन बांधे.ए प्रमाणे यावद वैमानिको सुधी जाणवू. परन्तु एटलो विशेष के के परंपव्याख्या
ट्रारोपपन्न पंचेन्द्रियतिर्यचयोनिको अने मनुष्यो चारे प्रकारना आयुष बांधे छे. बाकी वर्षा पूर्व प्रमाणे कहे. [३०] हे भगवन् ! शुं नैर- प्राप्तिः यिको अन्तरनिर्गत (नरकादियी नीकळी भवान्तर प्राप्त धयेला जेओने प्रथम समय वर्ने, समयादिना अन्तरनो प्रभाव के) परंपरनि॥१२१०॥ र्गत (नरकादिथी नीकळी भवान्तरने प्राप्त थयेला जेओने बे-त्रण-इत्यादि समयोनुं अन्तर छे) अने अनन्तर-परम्परा निर्गत (जेओ
नरकथी नीकळी विग्रहगतिमा वर्तता होय छे, अने ज्यांसुची उत्पत्ति क्षेत्रने प्राप्त न थाय त्यांसुधी ते अनन्तरमाचे अने परंपरभावे अनिर्गत एवा) 1 [उ.] हे गौतम ! नारको अन्तरनिर्गत पण होय छे, यावत्-अनन्तरपरम्परा निर्गत पण होय छे. [.] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के यावत्-'नारको अनन्तरपरम्परानिर्गत १(उ०] हे गौतम ! जे नैरयिको नरकथी प्रथम समये नीकळेला के तेओ अनन्तरनिर्गत, जेओ प्रथमसमय व्यतिरिक्त द्वितीयादि समयी नीकळेला छे तेओ परंपरनिर्गत, अने जेओ विग्रहगतिने प्राप्त थयेला तेओ अनन्तरपरंपरानिर्गत के. माटे ते हेतुथी हे गौतम ! एम कडेवाय छे के नैरयिको यावत्-अनन्तरपरम्परानिर्गत के ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी (ए श्रण त्रण आलापको) कहेवा,
अणंतरनिग्गया णं भंते ! नरहया किं नेरइयाउगं पकति जाच देवाउयं पकरेंति?, गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरेंति जाच नो देवाउयं पकरेंसि । परंपरनिग्गया णं भंते! नेरहण कि नेरइयाउयं. पुच्छा, गोयमा ! नेरहया
उयपि पकरेंति जाव देवाउयपि पकरेंति । अणंतरपरंपरअणिग्गया णं भंते ! नेरइया पुच्छा, गोयमा! नो नेरह51 याउयं पकरेंति जाव नो देवाउयं पकरेंति, एवं निरवसेसं जाव वेमाणिया ४ ॥ नेरइया णं भंते ! किं अणंतरं
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