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व्याख्या प्रज्ञप्तिः ॥१०८३ ॥
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छे, ते आ प्रमाणे- १ काळा, नीला (लीला), ३ लाल, ४ पीळा अने २ शुक्ल. तेमां राहुनुं जे काळं विमान छे ते खंजन-काज - ळना जेवा] वर्णवाळु छे, जे नील (लीलं) विमान छे ते काचा तुंबडाना वर्ण जेवं छे, जे लाल वर्णनुं राहुनु विमान हे ते मजिठना वर्ण जेवुं हे, जे पी राहुनुं विमान छे ते हळदरना वर्ण जेतुं छे. अने जे धोकुं विमान छे ते राखना ढगलाना वर्ण जेवुं कछु के. ज्यारे आयतो के जतो, विकुर्वणा करतो के काम-क्रीडा करतो राहु पूर्वमा रहेला चंद्रना प्रकाशने आवरीने पश्चिम तरफ जाय त्यारे पूर्वमां चंद्र पोताने देखाडे हे, अर्थात् चन्द्र पूर्वमा देखाय हे, अने पश्चिममा राहु पोताने देखाडे हे, अर्थात् राहु पश्चिममां देखाय छे, ज्यारे आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के काम-क्रीडा करतो राहु पश्चिममां चंद्रना प्रकाशने आवरीने पूर्व तरफ जाय त्यारे पश्चिममां चंद्र पोताने देखाडे ले, अने पूर्वमां राहु पोताने देखाडे छे. ए प्रमाणे जेम पूर्व अने पश्चिमना वे आलापक कह्या तेम दक्षिण अने उत्तरना वे आलापक कहेवा, ए प्रमाणे उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) अने दक्षिण-पश्चिमना (नैर्ऋत कोणना) वे आलापक कहेवा. ए प्रमाणे दक्षिण-पूर्व (अग्निकोण) अने उत्तर-पश्चिमना (वायव्य कोणना) वे आलापक कहेवा. ए रीते यावत्-त्यारे उत्तर पश्चिम (वायव्य कोण ) मां चन्द्र पोताने देखाडे थे, अने दक्षिण-पूर्वमा ( अग्निकोणमां ) राहु पोताने देखाडे छे. बळी ज्यारे आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो राहु चंद्रनी ज्योत्स्नानुं आवरण करतो २ स्थिति करे, त्यारे मनुष्यलोकमां मनुष्यो कहे छे के, ए प्रमाणे खरेखर राहु चंद्रने ग्रसे छे.' ए प्रमाणे ज्यारे राहु आत्रतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो चंद्रमा प्रकाशने आवरीने पासे थइने जाय त्यारे मनुष्यलोकमां मनुष्यो कहे ले के– 'ए प्रमाणे खरेखर चंद्रे राहुनी कुक्षी मेदी' २, अर्थात् राहुनी कुक्षिमां प्रवेश कर्यो. ए प्रमाणे आवतो के जतो, विकुर्वणा करतो के कामक्रीडा करतो राहु ज्यारे चंद्रनी
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१२ शतके उद्देशः ६ ||१०८३॥