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१३शतके #उद्देशा१. 1॥१२०७४
व्याख्या
नेरइयाणं भंते ! कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसप पण्णत्ते ?, गोयमा! से जहानामए-केह पुरिसे तरुणे प्रज्ञप्ति बलवं जुग जाव निउणसिप्पोवगए आउहियं बाहं पसारेजा पसारियं वा बाहं आउंटेना विक्खिण्णं वा मुर्हि ॥१२०७॥ साहरेज्जा साहरियं वा मुट्टि विक्विरेज्जा उन्निमिसियं वा अछि निमिसेज्जा निमिसियं वा अल्छि उम्मिसेजा,
भवे एयारूवे, णो तिणटे समढे, नेरड्या णं एगसमएण वा दुसमपण वा तिसमएण वा विग्गहेणं उवबजंति, नेरहयाणं गोयमा! तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए पणत्त एवं जाव वेमाणियाणं, नवरं एगिदियाण चउसमइए विग्गहे भाणियव्वे । सेसं तं चेव ।। (सूत्रं ५०१)॥ | [40] हे भगवन् ! नैरयिकोनी केवा प्रकारनी शीघ्र गति कही , अने तेओनो केवा प्रकारनी शीघ्र गतिनो विषय (समय) | कह्यो छे ? [उ.] हे गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष तरुण, बलिष्ठ, युगवाको (विशिष्ट बलबाळा सुषमादिकाळमा उत्पन्न थयेलो) अने मायावत् निपुण शिल्पशास्त्रनो ज्ञाता होय; ते पोताना संकुचित हाथने (त्वराथी) पसारे अने पसारेला हाथने संकुचित करे. पसारेली
मुठिने संकुचित करे, अने संकोचेली मुठीने पसारे-उघाडे, उघाडेली आंखने मींची दे अने मींचेली आंखने उघाडे, हे गौतम! (नारकोनी) आवा प्रकारनी-शीघ्रगति अथवा शीघ्र गतिनो विषय होय ! आ अर्थ यथार्थ नथी. नारको एक समयनी (जुगतिवडे) अने बे समय के त्रण समयनी विग्रहगतिवडे उत्पन्न थाय छे. हे गौतम! तेवा प्रकारे (एक समय, वे समय के व्रण समयनी) नैरयिकोनी शीघ्रगति अथवा शीघ्रगतिनो विषय कह्यो छे. ए प्रमाणे यावद्-वैमानिको सुधी जाणवू. परन्तु विशेष ए छे के. एकेन्द्रियोने (उत्कृष्ट) चार समयनी विग्रहगति कहेवी. बाकी (पृथिवीकायिकादि दंडकने विषे) वधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. ॥ ५०१॥
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