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शतक १४. (उद्देशक १.)
| १४शतके
॥१२०५॥
उद्देशान
SHASHA
REAM
चरमु १ म्माद २ सरीरे ३ पोग्गल ४ अगणी तहा किमाहारे ६। संमिह ७ मंतरे ग्वल्लु ८ अणगारे ९ केवली चेव १० ॥७॥
(उद्देशक संग्रह) १ चरमशब्दसहित होवाथी चरमनामे प्रथम उद्देशक, २ उन्मादना अर्थनो प्रतिपादक होवाथी उन्माद नामे बीजो उद्देशक, ३ शरीरशन्दसहित होवाथी शरीरनामे बीजो उद्देशक, ४ पुद्गल-पुद्गलार्थ प्रतिपादित करवाथी पुगलनामे चोथो उद्देशक, ५ अग्निशब्दसहित होबाथी अग्निनामे पंचम उद्देशक, ६ किमाहार (कई दिशाना आहारवालो होय छे' (ए प्रश्नयुक्त होवाथी किमाहारनामे षष्ठ उद्देशक, ७'चिरसंसिडोसि गोयमा' आ पदमा आवेला संश्लिष्टशब्दसहित होवाथी सातमो संश्लिष्ट उद्देशक, ८ नरकपृथिवीना अन्तरने प्रतिपादन करवाथी आठमो अन्तर उद्देशक, ९ प्रारंभमां 'अनगार'-पद होवाथी नवमो अनगार उद्देशक, अने १. आरंभमां 'केवली' ए पद होवाथी दशमो केवली उद्देशक(ए प्रमाणे चौदमा शतकमा दश उद्देशको कहेवामां आवशे.) |
रायगिहे जाब एवं बयासी-अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरम देवावासं वीतिकंते परमं देवावासमसंपत्ते का एस्थ णं अंतरा कालं करेजा तस्मण भंते ! कहिं गती कहिं उववाए पन्नत्ते', गोयमा ! जे से तत्व परियस्मओ
तल्लेसा देवावासा तहिं तस्स उववाए पन्नत्ते, से य तत्थ गए विराहेज्जा कम्मलेस्समेव पडिवडइ, से य तस्थ गए नो विराहेजा एयामेव लेस्सं उवसंपजित्ताणं विहरति ॥ अणगारे णं भंते ! भावियप्पा चरम असुरकुमारा
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