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१३शरके मेशा
॥१२.३॥
चउत्थुसए जाव अस्थि तस्स आराहणा । सेवं भंते! सेवं भंते ! जाब विहरइत्ति ( सूत्रं ४१८)॥१३-९॥ । | [म.] जेम कोई एक पुरुष रखने लइने गमन करे, ए प्रमाणे वन, वैदुर्य, यावत्-रिष्ट (श्यामरल) ए प्रमाणे उत्पलने हस्त|गत करी, पबने हस्तगत करी, ए प्रमाणे यावत् कोइ एक पुरुष सहस्रपत्रने लइने गति करे, तेम भावितात्मा अनगार पोते एवा
आकारे आकाशमां गति करे। [उ०] ए प्रमाणे जाण. [प्र.] हे भगवन् ! जेम कोई एक पुरुष बिसनी-कमळनी डांडलीने तोडी तोडीने गति करे, ते प्रमाणे अनगार पण पोते विसकृत्यने प्राप्त करी ( एवा आकारे) पोते गगनमा ममन करे। [उ.] पूर्ववत जाणवू. [म.] जेम कोइ एक मृणालिका-कमलनो छोर पाणीमां कायने-पोताना शरीरने डुवाडी दुवाडी (मुख बहार राखी) रहे, ए प्रमाणे भावितात्मा अनगार पोते एवा आकारे गगनमा उडे ? बाकी पधुं वागुलीनी पेठे जाणवू. [सं०] जेम कोइ एक वनखंड होय, अने ते काळो, काळा प्रकाशवाळो, यावत्-मेघना समूहरूप, प्रसन्नता देनार अने ( दर्शनीय) होय, एज प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण पोते बनखंखना कल्पने प्राप्त करी अर्थात् एवा आकारे पोते गगनमा उडे ! [उ.] बाकी बधु पूर्व प्रमाणे जाणवू. [प्र.] जेम कोई एक पुष्करिणी-वाव होय, अने ते चोखंडी, समान कांठावाळी, जेने अनुक्रमे शुश्नोमित वप्र-वंडी के एवी, पोपट वगेरे पक्षीओना मोटा शब्दवाळी, तेओना मधुर स्वरवाळी अने प्रसन्नता आफ्नार होय, ए प्रमाणे भावितात्मा अनगार पण पुष्करिणीना कृत्यने प्राप्त करी-एवा आकारने विकी पोते आकाशमा उडे ! [३०] हा उडे. [प्र०] हे भगवन् ! मावितात्मा अनगार पुष्करिणीना कत्यने प्राप्त-एवा आकारवान केटलां रूपो विकुर्ववाने समर्थ थाय! [3] वाकी पूर्व प्रमाणे जाणवू, पण ते संग्रालिथी यावत् विकुर्वशे नहि. [प्र.] हे भगवन् ! (पूर्वोक्त रूपो) मायावाळो विङ्क के मायारहित (अनगार चिकुर्वे ? [उ.] हे गौतम
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