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प्रजाति
SACREAK
अन्य छ ? [उ०] हे गौतम ! भाषा ए आत्मा नथी, पण तेथी अन्य (पुद्गलस्वरूप) भाषा के. [H०] हे भगवन् ! भाषा रूपी- ! १३शतके रूपवाळी के के अरूपी-रूप विनानी के ? [उ०] हे गौतम ! भाषा (पुद्गलमय होवाथी) रूपी छे, पण रूप विनानी नथी. [म.भाडा हे भगवन् ! भाषा सचिच-सजीव छे के अचित्त-अजीव छ । [उ०] हे गौतम ! भाषा सचित्त नथी, पण अचित्त छे. [३०] हे भगवन् ! भाषा जीवरूप-प्राणधारणरूप छे के अजीवस्वरूप छ ? [उ.] हे गौतम ! भाषा जीवरूप नथी, पण अजीवरूप छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोने भाषा होय छे के अजीवोने होय छे उ०] हे गौतम ! जीवोने भाषा होय छे, पण अजीवोने भाषा नथी होती. [प्र.] हे भगवन् ! सुं[बोलाया] पूर्वे भाषा कहेवाय, बोलाती होय त्यारे भाषा कहेवाय, के बोलाया पछी भाषा कहेवाय ! [उ.] हे गौतम ! बोलाया पहेला भाषा न कहेवाय, तेमज पोलाया पछी पण भाषा न कहेवाय, पण बोलाती होय त्यारे भाषा कहेवाय. [म.] हे भगवन् ! शुं बोलाया पहेलो भाषा भेदाय, बोलाती भाषा मेदाय, के बोलाया पछी भाषा मेदय ! [३०] हे गौतम ! बोलाया पहेलो भाषा न मेदाय, तेमज बोलाया पछी भाषा न मेदाय, पण बोलाती होय त्यारे भाषा मेदाय. [4.] हे भगवन केटला प्रकारनी कही छे ? [उ.] हे गौतम ! भाषा चार प्रकारनी कही छे, ते आ प्रमाणे--१ सत्य, २ मृषा-असत्य, ३ सत्यमषा-सत्य अने असत्य मिश्र, ४ असत्यापृषा-सत्य पण नहि तेम असत्य पण नहि. ॥ ४९३ ॥
आया भंते ! मणे अन्ने मणे?, गोयमा! नो आया मणे अन्ने मणे जहा भासा तहा मणेवि जाव नो अजीवाणं मणे, पुचि भंते ! मणे मणिज्जमाणे मणे ? एवं जहेव भासा, पुबि भंते ! मणे भिजति मणिज्नमाणे मणे भिन्नति मणसमयवीतिकंते मणे भिजति', एवं जहेव भासा । कतिविहे णं भंते ! मणे पण्णत्ते, गोयमा! च.
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