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पारने मध्यरात्रिने समये कुटुंबजमाया हु, अने ते उदायन राजामा मोटा अप्री-18
॥१९८९॥
४।११८९॥
त्यार पछी अन्य कोई दिवसे अभीचीकुमारने मध्यरात्रिने समये कुटुंबजागरण करता आवा प्रकारनो आ विचार उत्पम थयो| 'ए प्रमाणे खरेखर हुँ उदायन राजानो पुत्र अने प्रभादेवीनी कृक्षिथी उत्पन थयो छु, अने ते उदायन राजाए मने छोडी पोताना भाणेज केशिकुमारने राज्य उपर बेसाडी श्रमण भगवंत महावीरनी पासे यावत्-प्रव्रज्या लीधी-आत्रा प्रकारना आ मोटा अप्रीतिरूप मानसिक आंतर दुःखथी पीडित थएलो ते अभीचिकुमार पोताना अंतःपुरना परिवारसहित पोतार्नु भांडमात्रोपकरण-पात्र वगेरे सामग्री लईने नीकळे, नीकळी अनुक्रमे जवां-एक गामथी बीजे गाम जतां ज्यां चंपा नगरी , अने ज्यो कणिक राजा के त्यां आयी इणिकनो आश्रय करी विहरे के. अने त्यां पण तेने विपुल भोगनी सामग्री प्राप्त थई. पछी ते अभीचिकुमार श्रावक पण थयो, अने जीवाजीवतत्त्वनो ज्ञाता थइ यावत्-विहरे छे, तो पण ते अभीचिकुमार उदायन राजर्षिने विषे वैरना अनुबन्धथी युक्त हतो. ते काले ते समये आ रत्नप्रभा पृथिवीना नरकावासोनी पासे चोसठ लाख असुरकुमारोना आवासो कया छे, हवे ते अभीचि. कुमार षणा वर्षों सुधी श्रमणोपासक पर्यायने पाळी अर्धे मासिक संलेखनाथी त्रीश भक्तो अनशनपणे व्यतीत करी, ते पाप स्थानकनी आलोचना अने प्रतिक्रमण कर्या सिवाय मरणसमये काळधर्म पामी आ रत्नप्रभा पृथिवीना नरकावासोनी पासे चोसठ लाख आयाव (आताप-प्रकाशरूप) असुरकुमारावासोमांना कोइ एक आयावरूप असुरकुमारावासमां आतावरूप असुरकुमार देवपणे उत्पन्न पयो. त्यां केटलाक आयावरूप अमुरकुमार देवोनी एक पल्योपम स्थिति कही छे, अने त्यां अभीचिदेवनी पण एक पल्योपमनी स्थिति कही के. [प्र०] हे भगवन् ! ते अभीचिदेव आयुःक्षय थया पछी तथा भवक्षय थया पछी मरण पामीरयां जशे-क्या उत्पम यशे[३०] हे गौतम | महाविदेह क्षेत्रने विषे सिद्ध थशे, यावत् सर्व दुःखोनो अंत करशे. 'हे भगवन् ! ते एमजके, हे भगवन् ते
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