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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥१२८७॥
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छे. त्यारपछी अनेक गणनायक वगेरेना परिवारयुक्त ते केशीराजा उदायन राजाने उत्तम सिंहासन उपर पूर्वदिसा सन्मुख बेसाडीने एकसो आठ सोनाना कलशोवडे अभिषेक करे छे इत्यादि जेम जमालि संबन्धे कहुं छे तेम कहेनुं, यावत् ते केशी राजाए ए प्रमाणे कां के 'हे स्वामिन् ! अमे शुं दहए, अमे शुं आपीए, अने तमारे शेनुं प्रयोजन छे ? पछी ते उदायन राजाए केशी राजाने ए प्रमाणे कं- 'हे देवानुप्रिय ! कुत्रिकापणथी (हुं एक रजोहरण अने एक पात्र) मंगावना इच्छु छु. इत्यादि जेम जमालि संबन्धे कछु म अहिं जाणवुं. परन्तु एटलो विशेष छे के जेने प्रियनो वियोग दुःसह छे एवी पद्मावती अग्रकेशोने ग्रहण करे छे. त्यारबाद केशी राजा पीजीवार पण उत्तर दिसा तरफ सिंहासन गोठवावीने उदायन राजानो श्वेत अने पीठ (सोना रुपाना) कळशोवडे अभिषेक करे के. बाकी मधुं जमालिनी पेठे जाणबुं यावत् ते शिविकामां बेठो. ते प्रमाणे घावमाता संबन्धे जाणवुं, परन्तु एटलो विशेष के के अहिं | पद्मावती हंसना चिह्नवाळा रेशमी पटने ग्रहण करी - इत्यादि बाकी बधुं वे प्रमाणे जाणवुं यावत् ते उदायन राजा शिविका थकी उतरीने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर के, त्यां आवीने श्रमण भगवंत महावीरने त्रणवार वंदन अने नमस्कार करी उत्तर-पूर्व दिशा ईशान कोण तरफ जईने पोतेज आभरण, माला अने अलंकारने मूके छे इत्यादि पूर्व प्रमाणे कहेतुं यावद पद्मावती तेने ग्रहण करे | छे, अने यावत् (ते बोली के) 'हे स्वामिन् ! संयमने विषे प्रयत्न करजो, यावत् प्रमाद न करशो' एम कही केशी राजा अने पद्मावती श्रमण भगवंत महावीरने वंदन अने नमस्कार करे छे. वंदन अने नमस्कार करीने तेओ पोताने स्थानके गया पछी उदायन राजा | पोतानी मेळे पंचमुष्टिक लोच करे छे बाकीनुं वृत्तांत ऋषभदत्तनी पेठे जाणवुं यावत् ते सर्व दुःखथी रहित थाय छे. ॥ ४९१ ॥ ae jate अभीfuस्स कुमारस्स अन्नदा कथाई पुत्र्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमा
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उद्देश
॥११८७३