________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
प्राप्तिः ॥१९८२॥
www.kobatirth.org कोडंबियपुरिसे सहावेति को.२ एवं बयासी-खिप्पामेच भो देवाणुप्पिया! वीयीभयं नगरं सम्भितरवाहिरियं जहा कूणिओ उववाइप जाव पज्जुवासति, पभावतीपामोक्खाओ देवीओ तहेव जाच पज्जुवासंति, धम्मकहा।
* शतके तए ण से उदायणे राया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोचा निसम्म हतुढे उहाए उढेइ २ समणं
॥११८२॥ भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाच नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भते तहमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुज्झे वदहत्तिक नवरं देवाणुप्पिया! अभीयिकुमारं रज्जे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुपियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता | जाव पव्वयामि, अहासुहं देवाणुपिया! मा पडिबंध । तर णं से उदायणे राया समणेणं भगवया महावीरेणं
एवं वुत्ते समाणे हद्वतुहे समणं भगवं महावीरं वदति नमसति २ तमेव आभिसेकं हत्थि दुरूहह २त्ता समण| स्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ मियवणाओ उजाणाओ पडिनिखमति प०२ जेणेष वीतीभये नगरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
त्यारवाद श्रमण भगवंत महावीर उदायन राजाना आवा प्रकारना उत्पन्न थएला आ संकल्पने जाणीने चंपा नगरीथी अने| पूर्णभद्र चैत्य थकी नीकळे छे, नीकळीने अनुक्रमे गमन करता, एक गामी बीजे गाम यावत् विहरता, ज्यां सिंधुसौवीर देश छे, ज्यां वीतभय नगर थे, अने ज्यां मृगवन नामे उद्यान के त्यां आवे छे, न्यां आवीने यावद् विहरे ले. ते समये वीतभय नगरमां शंगाटक-श्रीगोडाना जेवा त्रिकोण (आकारवाला) इत्यादि मार्गोमां (घणा माणसो परस्पर कहे के के 'अहिं मृगवन उद्यानमां भगवान महावीर पधार्या के एम सांभळीने घणा क्षत्रियो वगेरे वंदन करवा नीकळे छे इत्यादि) यावद्-परिषद् पर्युपासना करे छे.[४।
SOHASA RUSTICS***
AGRORE
For Private And Personal