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प्रज्ञप्ति ११७७॥
A
प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इन्द्र अने अमरकुमारना राजा चमरनो चमरचंचा नामे आवास क्या कह्यो के ? [उ०] हे| गौतम ! जंबुद्वीप नामे द्वीपमां मेरु पर्वतनी दक्षिणे तिर्यम् असंख्याता द्वीपसमुद्रो उल्लंघीने (अरुणवर द्वीपनी बाह्य वेदिकाना अन्तथी
[४/१३शतके अरुणवर समुद्रमा तालीश लाख योजन गया बाद चमरेन्द्रनो तिगिच्छककूटनामे उत्पातपर्वत आवे , तेनी दक्षिण दिशाए ६५५
उदेशक क्रोड, ३५ लाख अने पचासहजार योजन अरुणोदक समुद्रमा तीळ गया बाद नीचे रत्नप्रभा पृथिवीनी अंदर चालीशहजार योजन जइए एटले चमरेन्द्रनी चमरचंचा नामे राजधानी आवे छे इत्यादि) वीजा शतकना आठमा सभा उद्देशकमां जे वक्तव्यता कही छे ने समग्र अहिं कहेवी, परंतु तेमां आ विशेष छे के तिगिच्छककूट नामे उत्पात पर्वत, चमरचंचा नामे राजधानी, चमरचंचा नामे आवासपर्वत, अने वीजा घणाना-इत्यादि बधुं ते प्रमाणे कहे. यावत्-त्रण लाख, सोळ हजार, बसो सन्यावीश योजन (त्रण गाउ, बसो अठ्यावीश धनुष अने कंडक विशेषाधिक) साडा तेर अंगुल-एटली चमरचंचानी परिधि के, ते चमरचंचा राजधानीथी दक्षिणपश्चिम दिशाए (नैर्ऋत्य कोणने विषे छसो पंचावन क्रोड, पांत्रीश लाख, बने पचास हजार योजन अरुणोदक समुद्रमा तिर्छा गया बाद अहिं असुरकुमारना इंद्र अने अमुरकुमारना राजा चमरनो चमरचंच नामे आवास कह्यो रे. ते लंबाइ अने पहोळाइमां चोराशी हजार योजन के तेनी परिधि बे लाख, पांसठहजार अने छसो वत्रीश योजनथी कंदक विशेषाधिक . ते आवास एक प्रकारथी (किल्लार्थी ) चोतरफ विटाएलो छे. ते प्राकार उंचो-उंचाइमा दोढसो योजन के. ए प्रमाणे चमरचंचा राजधानीनी बधी वक्तव्यता यावत्-"चार प्रासाद पंक्तिओ " स्यांसुधी कहेवी, परन्तु ( १ सुधर्मासभा, २ उपपातसभा, ३ अभिषेकसभा, ४ अलंकारसभा अने ५ व्यवसायसभा) ए पांच समा न कहेवी.
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