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१३शतके | उद्देशः५ ॥११७॥
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Acharya Shri न्याख्या18| संक्षिप्त-सांकडो भाग क्या कहेलो के ? [उ.] हे गौतम ! आ रत्नप्रभा पृथिवीना उपर अने नीचेना क्षुद्र (लघु) प्रतरने विषे अहिं
लोकनो बराबर समभाग कहेलो छ, अने अहिंज लोकनो सर्वथी संक्षिप्त सांकडो भाग कहेलो के. [प] हे भगवन् ! क्यां विग्रह ॥११७॥ विग्रहिक-लोकरूप शरीरनो वक्रतायुक्त भाग के ? [३०] हे गौतम ! ज्यां विग्रहकंडक चक्रतायुक्त अवयत्र के अर्थात् [ लोकरूप
शरीरनो ब्रह्मदेवलोकरूप कोणोनो भाग के, त्यां प्रदेशनी वृद्धि-हानि होवाथी वक्र अवयव छे] त्या लोकरूपशरीर वक्रतायुक्त के.४८६
किंसंठिए ण भंते ! लोग पण्णत्ते?, गोयमा! सुपइट्टियसंठिए लोए पण्णत्ते, हेहा विच्छिन्ने मज्झे जहा स. तमसा पदमुद्देसे जाव अंतं करेंति । एयरस ण भंते। अहेलोगस्म तिरियलोगस्स उडलोगस्स य कयरे २ हितो जाब विसेसाहिया वा?, गोयमा! मम्वत्थोवे तिरियलोए उड़लोए असंखेनगुणे अहेलोए विसेसाहिए । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति (सूत्रं ४८७)॥ १३-४॥
[प्र.] हे भगवन् ! लोकनुं संस्थान केवा प्रकारे कयुं छे ? [उ.] हे गौतम ! लोकनु सुप्रतिष्ठक-(उधा बाळेला शराबना उपर कामुकेला शरावसंपुट) ने आकारे आलोक कह्यो छ. नीचे विस्तीर्ण, मध्यमां संक्षिप्त-इत्यादि जेम सातमा शतना प्रथम उद्देशकमां
कया प्रमाणे यावत्-'संसारको अन्त करे छे'-- त्यांसुधी जाणवू. [4] हे भगवन् ! आ अधोलोक, तिर्यग्लोक, अने ऊर्बलोकमां कयो लोक कोनाथी यावद् विशेषाधिक छ ? [उ०] सर्वथी थोडो तिर्थम्लोक छे, तेथी असंख्यातगुण ऊर्चलोक छे अने तेथी विशेषाधिक अधोलोक मे. 'हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छ.' । ४८७ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीमत्रना १३ मा शतकमां चोथा उद्देशानो मलार्थ संपूर्ण थयो.
वा ?. गोयमा यस्स णं भंते । अहेलोलाए पण्णत्ते, हेडा
वितायुक्त ने
AREKAR
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