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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६६२॥
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८ शतके उद्देशः६ ॥६६२॥
गोयमा! एवं बुच्चइ-आराहए, नो विराहए ।। ( सूत्रं ३३३)॥ | [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के तेओ आराधक के पण विराधक नथी ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष एक मोटा ऊनना, गजना लोमना, शणना रेसामा, कपासना रेसाना, तृणना अग्रभागना बे, त्रण के संख्यात छेदककडा-करी तेने अग्निमां नाखे तो हे गौतम! ते छेदातां मेदायेलं, अग्निमां नंखाता नंखायेलं, बळतां वळेलु एम कहेवाय ? हे भगवन् ! हा, छेदातां छेदायेलं, यावत् वळतां बळेलं कहेवाय, अथवा कोई पुरुष नवू, धोएल के तन्त्र-साळथी तरत उतरेलु कपडुं मजीठना रंगनी कुंडीमा नांखे तो हे गौतम! ते उंचेयी नांखता उंचे नंखायेखें, नांखतां नंखायेखें, रंगात रंगायेलु एम कहेवाय ? हा, भगवन् ! ते उंचेथी नांखतां उंचेयी नंखायेखें, यावत् रंगात रंगायेलुं कहेवाय; ते हेतुथी हे गौतम ! एम कहेवाय छे के [आरधना माटे तैयार थयेलो ते आराधक के पण विराधक नथी. ॥ ३३३ ॥
पईवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पदीवे झियाति लट्ठी झियाइ वत्ती झियाइ तेल्ले झियाइ दीवचंपए झियाइ जोती झियाइ ?, गोयमा ! नो पदीवे झियाइ जाव नो पदीवचंपए झियाइ, जोई झियाइ।। आगारस्सणं भंते ! झियायमाणस्स किं आगारे झियाइ कुड्डा वा झियाइ कडणा झि० धारणा झि० बलहरणे झि० वंसा० मल्ला झि० वग्गा झियाइ छित्तरा झियाइ छाणे झियाति जोती झियाति ?, गोयमा ! नो अगारे झियाति, नो कुड्डा झियाति जाव नो छाणे झियाति, जोती झियाति ॥ (सूत्रं ३३४)॥
[प्र.] हे भगवन् ! बळता दीवामां शुं बळे छ ? शुं दीवो बळे छे, दीपयष्टि-दीवी बळे छे, वाट बळे छे, तेल बळे छ, दीवान |
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