________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-%
%
गोयमा: बहुतरिया से निजरा कजइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जा। समणोवासगस्स णं भंते ! तहारूवं व्याख्याअस्संजयअविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मं फासुएण वा अफासुएण वा एसणिज्जेण वा अणेसणिजेण वा असण
८ शतके प्रज्ञप्तिः पाण जाव किं कजइ?, गोयमा! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काइ निजरा कज्जइ ।। (सूत्रं ३३१)॥
| उद्देशः६ ॥६५६॥
[प्र०] हे भगवन् ! तेवा प्रकारना (उत्तम) श्रमण या ब्राह्मणने प्रासुक अचित्त अने एषणीय (निर्दोष) अशन, पान, खादिम तथा स्वादिम आहारवडे प्रतिलाभता-सत्कार करता-श्रमणोपासकने शुं (फल) थाय ? [उ०] हे गौतम! एकांत निर्जरा थाय, पण तेने पाप कर्म न थाय. [प्र०] हे भगवन् ! तेवा प्रकारना श्रमण या ब्राह्मणने अप्रासुक (सचित्त ) अने अनेषणीय (सदोष) अशनादिवडे प्रतिलाभता श्रमणोपासकने शुं (फल) थाय ? [उ०] हे गौतम! घणी निर्जरा थाय, अने अत्यन्त अल्प पापकर्म थाय.
[प्र०] हे भगवन् ! तेवा प्रकारना विरतिरहित, अप्रतिहत अने अप्रत्याख्यान पापकर्मवाळा असंयतने प्रासुक अथवा अप्रासुक, एषउणीय अथवा अनेषणीय अशनादिवडे प्रतिलाभता श्रमणोपासकने शुं फल थाय ? [उ०] हे गौतम ! एकांत पापकर्म थाय, पण
काइ निर्जरा न थाय. ॥ ३३१ ।। P निग्गथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविलु केई दोहिं पिंडेहिं उवनिमंतेजा-एगं आउसो !
अप्पणा मुंजाहि, एग थेराणं दलयाहि, से य तं पिण्डं पडिग्गहेज्जा, थेरा य से अणुगवेसियब्वा सिया, जत्थेव अणुगेवसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेवाणुप्पदायब्वे सिया, नो चेव णं अणुगवेसमाणे थेरे पासिजा तं नो अप्पणा: भुजेजा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अणावाए अचित्ते बहुफासुए थंडिल्ले पडिलेहेत्ता पमजित्ता परिहावेयब्वे सि
--ECESEARCH
For Private and Personal Use Only