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८ शतके उद्देशः५ ॥६४७॥
| [] राजगृह नगरमां यावत् गौतमे एं प्रमाणे कधुकेहे भगवन् ! आजीविकोए (गोशालकना शिष्योए) स्थविर भगवन्तोने से ध्याख्या- | आ प्रमाणे का हतुं-हे भगवन् ! जेणे सामायिक कयु छे एवा श्रमणना उपाश्रयमां बेठेला श्रमणोपासकना भांड-वस्त्रादि वस्तुनुं अज्ञप्ति कोइ अपहरण करे, तो हे भगवन् ! (सामायिक समाप्त थया पछी) ते वस्तुनुं अन्वेषण करतो ते श्रावक शुं पोताना भांडने शोधे १३४७ IC छे के पारका भांडने शोचे ? [उ०] हे गौतम ! ते श्रावक पोताना भांडने शोधे छे, पण पारका भांडने शोधतो नथी. [प्र०] हे
| भगवन् ! ते शीलवत, गुणव्रत, विरमवत, प्रत्याख्यान अने पौषधोपचासवडे ते श्रावकनुं (अपहत) भांड ते अभांड थाय ? [उ.] हे गौतम ! हा, अभांड थाय. [प्र०] हे भगवन् ! (जो अभांड थाय तो) एम शा हेतुथी कहो छो के (ते श्रमणोपासक) पोताना मांडने शोधे छे, पण पारका भांडने शोधतो नथी ? [उ०] हे गौतम ! ( सामायिक करनार ) ते श्रावकना मनमा एवो परिणाम होय छे. के-'मारे हिरण्य नथी, मारे मुवर्ण नथी, मारे कांसुं नथी, मारे वस्त्र नथी, अने मारे विपुल, धन, कनक, रन, मणि, मोती, शंख, | परवाला, रक्त रत्नो-इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मथी, परन्तु तेणे ममत्व भावनुं प्रत्याख्यान कर्यु नथी, ते हेतुथी हे गौतम! एम कहेवाय छे के ते पोताना भांडने गवेषे छे, पण पारका भांडने गवेषतो नथी. [म.] हे भगवन् ! जैणे सामायिक कयु के एवा, श्रमणना उपाश्रयमा रहेला श्रमणोपासकनी सीने कोइ पुरुष सेवे तो शुं ते तेनी स्त्री सेवे छे के अस्त्रीने-अन्यनी स्त्रीने सेवे? [[उ०] हे गौतम ! ते पुरुष तेनी स्त्रीने सेवे छे पण अन्यनी स्त्रीने सेवतो नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ते शीलवत, गुणवत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान अने पौषधोपवासवडे (ते श्रावकनी) स्त्री अस्त्री (अन्यत्री) थाय? [उ०] हा, थाय. [म.] हे भगवन् ! तो एम शा हेतुथी कहो छो के तेनी स्त्रीने सेवे छे पण अस्त्री (अन्यखी) मे सेवतो नथी? [उ०] हे गौतम ! (शीलवतादि वडे)
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