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व्याख्याप्रज्ञप्तिः
॥६१०॥
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दियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे ?, गोयमा ! नो एगिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीबिसे जाव नो चउरिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे, पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीबिसे, जड़ पंचिदियतिरिक्खजोणियजावकम्मासीविसे किं समुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियजावकम्मासीविसे गन्भवकंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियकम्मासीविसे १, एवं जहा वेडब्बियसरीरस्स भेदो जाव पज्जत्तासंखेज्जवासाउयगन्भवतिय पंचिंदियतिरिक्ग्वजोणियकम्मासीविसे, नो अपज्जत्तासंखेज्जवासाउयजावकम्मासीविसे । जइ मणुस्सकम्मासीविसे किं संमुच्छिममणुस्मकम्मासीविसे गभवकुंतियमणुस्मकम्मासीविसे ?, गोयमा ! णो समुच्छिममणुस्सकम्मासीविसे, गव्भवतियमणुस्मकम्मासीविसे, एवं जहा वेउब्वियमरीरं जाव पज्जत्तासंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगन्भवतिय मणूस कम्मासीविसे, नो अपज्जत्ता जाव कम्मासीविसे ।
[प्र० ] हे भगवन् ! जो कर्माशीविष छे तो शुं नैरयिक कर्माशीविष छे, तिर्थचयोनिक कर्माशीविष छे, मनुष्य कर्माशीविष छे के देव कर्माशीविष छे ? [अ०] हे गौतम! नैरथिक कर्माशीविष नथी, पण तिर्यत्रयोनिक कर्माशीविष छे, मनुष्य कर्माशीविष छे अने देवकर्माशीविष छे. [प्र०] हे भगवन् ! जो तिथंचयोनिक कर्माशीविष छे तो शुं एकेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे के यावद् पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक कार्माशीविष छे ? [उ०] हे गौतम! एकेन्द्रिय तिर्यचयोनिकथी आरंभी यावत् चतुरिन्द्रिय तिर्यंचयोनिकपर्यन्त कर्माशीविष नथी, पण पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे. [प्र०] हे भगवन् ! जो पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक कर्माशीविष छे तो शुं संमूमि पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे के गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक कर्माशीविष छे ? [अ०] है ।
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८ शतके उद्देशः २
॥६१०॥