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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६०६॥
८ शतके उद्देशः१ ॥६०६॥
* णे द्रव्यो मनःप्रयोगपरिणत होय तो शुं सत्यमनःप्रयोगपरिणत होय ? (इत्यादि ४ प्रश्न.)[उ.] हे गौतम! सत्यमनःप्रयोगप
रिणत होय, अथवा यावत् असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होय. अथवा एक सत्यमनःप्रयोगपरिणत होय अने वे मृषामनःप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे अहीं पण द्विकसंयोग अने त्रिकसंयोग कहेवो. यावत् अथवा एक व्यस्र (त्रिकोण) संस्थानपणे परिणत होय, एक समचतुरस्र (चोरस ) संस्थानपणे परिणत होय अने एक आयतसंस्थानपणे परिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! चार द्रव्यो शुं प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विस्रसापरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! ते ( चारे द्रव्यो) प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय के विश्रसापरिणत होय. १ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय अने त्रण मिश्रपरिणत होय. २ अथवा एक प्रयोग* परिणत होय अने त्रण विस्रसापरिणत होय. ३ अथवा वे प्रयोगपरिणत होय अने वे मिश्रपरिणत होय. ४ अथवा वे प्रयोगपरिणत
होय अने वे विस्रसापरिणत होय. ५ अथवा त्रण प्रयोगपरिणत होय अने एक मिश्रपरिणत होय..६ अथवा त्रण प्रयोगपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. ७ अथवा एक मिश्रपरिणत होय अने प्रण विस्रसापरिणत होय. ८ अथवा बे मिश्रपरिणत होय अने बे विस्त्रसापरिणत होय. ९ अथवा त्रण मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. १० अथवा एक प्रयोगपरिणत होय एक | मिश्रपरिणत होय अने बे विस्रसापरिणत होय. ११ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय बे मिश्रपरिणत होय अने एक विस्रसापरिणत होय. १२ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने एक मिश्रपरिणत होय एक विस्रसापरिणत होय.
जइ पयोगपरिणया किं मणप्पयोगपरिणया ३?, एवं एएणं कमेणं पंच छ सत्त जाव दम संखेजा असंखेजा अणंता य दव्वा भाणियब्वा (एक्कगसंजोगेण ) दुयासजोएणं तियासंजोएणं जाव दससंजोएणं एकारसंजोएणं
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